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धार्मिक और खैराती धर्मादे
[ सत्रहवां प्रकरण
नुसार-सम्पादन नहीं कर सकती, देखो - आनकी देवी बनाम गोपाल आचार्य 10 I. A. 32; 9 Cal. 766; 13 C. L. R. 30; 16 W. R. C. R. 282; 19 I. A. 108; 19 Cal. 513; 3 Bom. H. C. A. C. 75.
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दफा ८४७ धर्मादेके स्थापकका ट्रस्टी होना
जिसने धर्मादा क़ायम किया हो वह अपने धर्मादेका खुद भी ट्रस्टी हो सकता है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि अगर धर्मादेका कोई ट्रस्टी न हो तो धर्मादा क़ायम करने वाला ज़रूर ही ट्रस्टी माना जाय; देखोरघुवरदयाल बनाम केशवरामानुजदास 11 All 18; 18 W. R. C. R. 39; यह बात तब होती हैं जब धर्मादा वसीयतके द्वारा क़ायम न किया गया हो ।
दफा ८४८ ख़ानदानी देवमूर्तिको खर्च न मिलेगा
अगर धर्मादेके साथ कोई जायदाद या स्ट्रट न हो तो खानदानकी देवमूर्ति के लिये खर्च देनेको खानदानका कोई भी मेम्बर वाध्य नहींहो सकता देखो - 5 W. R. C. R. 29
दफा ८४९ शिवायत
जो आदमी किसी धर्मादेके मन्दिर या मूर्ति की पूजा आदिका प्रबन्ध और देखरेख रखता है उसे शिवायत या पुजारी कहते हैं शिवायत अपने काम करने के गुणों से होता है और उस मन्दिरमें लगी हुई जायदादका प्रबंध करता है जिसका कि वह शिवायत है मन्दिरमें लगी हुई जायदाद के सम्बन्धमें वह ट्रस्टी की हैसियत रखता है और मन्दिरके पूजा पाठ आदिके सम्बन्ध में जो काम करता है वह उसका कर्तव्य कर्म है इस बात में उसकी हैसियत कुछ ज्यादा होती है ।
पुजारी केवल शिवायतका नौकर होता है । वह उसके अधिकारोंका दावा नहीं कर सकता । श्रीपति चटर जी बनाम खुदीराम बनरजी 41 C. L. J. 22; 82 I. C. 849; A. I. R. 1925 Cal. 442.
शिवसूरी बनाम मथुरानाथ 13M.I.A. 270 - 273 के मुक़द्दमे में जुडीशल कमेटीने कहा कि शिवायत के कब्जे में जो जायदाद रहती है वह उसका क़ानूनी क़ब्ज़ा नहीं है वह केवल धार्मिक धर्मादेके मेनेजरकी हैसियतसे क़ाबिज़ रहता है क्योंकि जायदादकी आमदनी देवमूर्ति की सेवाके लिये अर्पणकी गयी थी इसलिये देवमूर्तिमें लगी हुई जायदाद, आमदनी, चढ़ावा, सब उस देवमूर्तिका है शिवायतका नहीं है। शिवायत जो कुछ पाता है वह अपने काम करने के बदले में पाता है । धर्मादेकी जायदाद में शिवायतका कोई हक़