Book Title: Hindu Law
Author(s): Chandrashekhar Shukla
Publisher: Chandrashekhar Shukla

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Page 1115
________________ १०३४ धार्मिक और खैराती धमादे [सत्रहवां प्रकरण - ~ - - पुजारीको प्राप्त हो सकते हैं । मुराई, काछी और मालीमें बहुत कम फरक है। माली, काछीके बराबर माना जाता है-देखो-1923 A.I.R. 165All. दफा ८५१ क़ब्ज़ा और प्रबन्धका अधिकार धर्मादेकी जायदादके कब्जे और प्रबन्धका अधिकार शिवायत या दूसरे मेनेजरको है; देखो-31 I. A. 203; 32 Cal. 129; 8 C. W. N. 809. कानून जाबता फौजदारी एक्ट नं० ५ सन १८६८ ई० की दफा १४५ की कार्रवाई में अदालत सिर्फ इतना कह सकती है कि किसी मंदिरपर कब्ज़ा किसका है किन्तु वह अदालत मंदिर के चढ़ावे या पुजारीकी जगह काम करने के हकका निर्णय नहीं कर सकती, देखो--38 Cal. 387; 29 Mad. 2373 37 Cal. 578. शिवायत सिर्फ मेनेजर है लेकिन धर्मादे सम्बन्धी अदालती सब कारीवाई और मुक़द्दमे आदि उसीके नामसे चलते हैं; देखो-15 B. L. 318; 27 Mad. 435; मूर्ति की जायदाद या धर्मादेके लाभ या रक्षाके लिये जो कुछ जरूरी है उसके करनेका शिवायत या पुजारी, या मेनेजर केवल अधिकार ही नहीं रखता बल्लि पाबन्द है-35 Cal. 691. जैन सम्प्रदायका मशहूर मुक़द्दमाः बारी बारीसे पूजा करने और अपने धर्मके अनुसार आचार करनेका हक़ हालमें प्रिवी कौन्सिलने हुनासा रामासा वगैरा बनाम कल्याणचन्द वगैरा 1929 A. I. R. 261 Pri. वाले जैनियोंके मशहूर मुक़दमे में माना। - इस मुकद्दमे में धार्मिक अधिकारों का निर्णय किया गया है ज़िला अकोला (मध्यप्रदेश) में शीरपुर नामका एक स्थान है। यहां एक बहुत प्राचीन जैन मन्दिर है और इसका इन्तिज़ाम सदैवसे श्वेताम्बरियोंके हाथमें रहा है सन् १६०० ई० के लगभग अर्थात् २० वीं शताब्दीके प्रारम्भमें इस मन्दिरके नौकर चाकर खुद ही मन्दिर और मूर्ति के मालिक बन बैठे और असली मालिकोंको ताक़में रख दिया ये नौकर पूजा करने वालोंको तङ्ग करने लगे और उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे। यही नहीं बल्कि मन्दिरकी सारी आमदनी खाजाते थे। श्वेताम्बरियोंके हाथमें सिर्फ नाम मात्रके लिये इन्तिज़ाम रह गया था नौकरोंने अपनी मज़बूती करनेकी गरज़से श्वेताम्बरी और दिगम्बरी दोनों फिरकों में लड़ाई कराने की चेष्टाकी मगर ये दोनों फिरके एक हो गये और नौकरोंसे मोर्चा लिया। दिगम्बरियोंने मन्दिरके नौकरों पर फौजदारीके मामले चलाये और उनको फिर नौकरका नौकर बना दिया। दोनों फिरकोंके बराबर बराबर मेम्बरोंकी एक कमेटी बनाई गई थी और उसीके द्वारा सब काम काज तथा इन्तिज़ाम होता था इस एकामें यह समझौता हो गया था कि दिगम्बरी व श्वेताम्बरी दोनों फिरके अपने अपने

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