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दफा ८५३-८५८]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
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पुजारी होने का दावा करते थे किन्तु उनके परस्पर यह निश्चित हुआ कि मंदिरके चढ़ावेका एक भाग दूसरा पक्ष लिया करे अदालतने इस इन्तज़ामको स्वीकार कर लिया। दफा ८५६ हिसाब
शिवायत या मेनेजर या दृस्टीसे धर्मादे की जायदादका और मूर्तिके चढ़ावे या दान आदिका हिसाव लिया जा सकता है। देखो-8 Bom. 4323 21 Bom. 247; 28 I. A. 199; 4 I. W. N. 2332 Bom. L. R. 5163B 23 Bom. 669; 35 Cal. 226; 12 C. W. N. 323, दफा ८५७ मंदिरके सम्प्रदाय
हिन्दु मंदिरोंके साथ जो सम्प्रदाय या अखाड़े लगे होते हैं उनके नियम एकसे नहीं होते, कहां किस समाजके या सम्प्रदायके क्या नियम हैं? यह मालूम करके उन्हीं नियमोंके अनुसार अदालत सब तरहकी कार्रवाई करेगी. देखो-1 I. A. 209-228. दफा ८५८ मेनेजर, शिवायत और महन्त आदिके अधिकार
(१) शिवायत, महन्त, या धर्मादेके अन्य मेनेजरको अधिकार है कि-धर्मादेके लाभ और उसकी रक्षाके लिये और विशेषकर उन मुकद्दमोंसे बचानेके लिये जो उस धर्मादेके विरुद्ध दायर किए जायं उस धर्मादेकी जायदादको काममें लावें, देखो-हुसेन अलीखां बनाम भगवानदास महन्त 34 Cal. 249; 11 C. W. N. 261; 35 Cal. 691-6987 12 C. W.N. 550-557.
__ संयुक्त शिवायत देवोत्तर सम्पतिके लाभके लिये नियमों में इस प्रकार परिवर्तनकर सकता है कि उनसे धर्मकर्ताके असली मामलेके नियमोंमें कोई परिवर्तन न हो-श्रीपति चटरजी बनाम खुदीराम बनरजी 410. L.J. 22; 82 I. C. 840; A. 1. R. 1925 Cal. 442.
शिवायत जायदादका अधिकारी नहीं होता, बल्कि उसके अधिकार एक नाबालिग्रके वलीकी तरह होते हैं-श्रीपति चटरजी बनाम खुदीराम बनरजी 41 C. L.J. 22; 82 I. C. 840; A. I. R. 1925 Cal. 442..
(२) उनको अधिकार है कि मूर्तिकी सेवाके लिये जो कुछ भी आवश्यका हो पूरी करें और धर्मादेकी जायदादके लाभ और रक्षाके लिये वहां तक उद्योग करें जहांतक कि 'एक बच्चा नाबालिगकी जायदादका मेनेजर' करसकता है-प्रसन्न कुमारी देवी बनाम गुलाबचन्द बाबू 2 I.A. 145, 14 B.L. R. 450; 23 W. R. C. R. 253.