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दफा ८४७-८५०]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
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नहीं है वह सिर्फ मेनेजरकी उपाधि मात्र रखता है। देखो-शिवेश्वरीदेवी बनाम मथुरानाथ 13 M. I. A. 270; 13 W. R. P. C. 18-1975 Bom. L. R. 932.
जायदाद उस देवताकी होती है, शिवायतको अधिकार है कि मूर्ति और उसकी जायदाद अपने अधिकारमें रखे । अधिकार सम्बन्धी दावेकी तमादी कब होती है ? इस बातके लिये देखो ( 1910) 15 C. W. N. 36.
इङ्गलिशलॉ के अनुसार शिवायतकी हैसियत ट्रॅस्टीकी तरह, जिसके हक्रमें जायदादके अधिकार दिये जाते हैं, नहीं होती। शिवायत केवल मेनेजर होता है और जायदाद देवताके नाम अर्पितकी जाती है। शिवायतके अधि. कारमें उसका कब्ज़ा और प्रबन्ध रहता है और उसे अदालतके अधिकार प्राप्त होते हैं यद्यपि जायदाद श्रीठाकुरजीपर समर्पितकी जाती है-श्री श्रीगोपाल जी ठाकुर बनाम राधा विनोद मण्डल 41 C. L. J. 396, 88 I. C. 616; A. I. R. 1925 Cal. 996.
शिवायत का उत्तराधिकार असली ग्रांट के अनुसार होता है किन्तु जब उसमें कोई खास हिदायत न हो, सो दावा का वारिस उत्तराधिकारी होता है-श्रीपति चटरजी बनाम खुदीराम बनरजी 41 C. L.J. 22782 I.C. 840; A.J. R. 1925 Cal. 442. दफा ८५० मूर्तिके चढ़ावेका हल
मूर्तिपर जो कुछ चढ़ावा चढ़ता है उसमें शिवायत या पुजारीकी क्या हक्क है यह बात चढ़ावा की किस्मपर निर्भर है अगर कोई जल्द नष्ट हो जाने घाली खाने पीने की चीज़ हो तो उसे अवश्य पुजारी या दूसरा ब्राह्मण लेगा। लेकिन अगर मूर्ति प्रसिद्ध एवं प्राचीन है और सार्वजनिक पूजनके लिये स्थापित है और उसपर रुपया या धातुकी चीजें या ऐसाही कोई स्थाई चढ़ावा चढ़े तो वह उस मंदिर और मंदिरके सम्बन्धके सब कृत्यों और खैरातके खर्च के लिये समझा जायगा यानी वह उस मंदिरकी सम्पत्ति माना जायगा। वह चढ़ावा पुजारी या शिवायतकी निजकी जायदाद नहीं बन सकता । लेकिन अगर धर्मादा स्थापित करने वालेने इसके विरुद्ध प्राज्ञादी हो तो दूसरी बात है। देखो--गिरिजानन्द दत्तझा बनाम शैलानन्द दत्तझा 23 Cal. 645.
प्रश्न यह था कि हिन्दूलॉ के अन्तर्गत धार्मिक दान लेने के लिये देवमूर्ति का क्या मुसलमान पुजारी हो सकता है ? तय हुआ कि अगर रवाजके अनुसार मुसलमान माली को देवमूर्तिके पूजा करनेका अधिकार प्राप्त है तो वह पूजा करने का अबभी अधिकारी है पूजा करना और चढ़ावा लेना दोनों काम एक दूसरेसे सम्बन्ध रखते हैं इसलिये यह दोनों अधिकार मुसलमान
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