________________
दफा ८४५]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
१०३६
ट्रस्टी, मेनेजर, शिवायत या पुजारी और महन्त आदिके
कर्तव्य और अधिकार
दफा ८४५ ट्रस्ट
जायज़ धर्मादा कायम करने के लिये यह ज़रूरी नहीं है कि कोई दृस्टी या मेनेजर ज़रूरही मुकर्रर किया जाय यह बात 25 Cal. 112 और 12Bom. 247. वाले मामलोंमें तय होगयी है। लेकिन धर्मादेका जैसा वह काम है उसके लिये कोई दूस्टी या मेनेजर या दूसरा कोई प्रबन्धक मुकर्रर करनाही पड़ता है। देवमूर्तिके लिये धर्मादेके तौरपर दी हुई जायदादका दूस्ट मुकर्रर करना यद्यपि कानूनन् ज़रूरी नहीं है परन्तु फिर भी कोई आदमी उसकी जायदाद के प्रबन्ध करनेके लिये अवश्य होना चाहिये क्योंकि देवमूर्ति स्वतः जायदाद का प्रबन्ध नहीं कर सकती।
यदि किसीने कोई धर्मादा कायम किया तथा उस धर्मादेकी स्वाभा. विक स्थिति ऐसी है कि जिसमें ट्रस्टका होना अत्यावश्यक हैमगर वह ट्रस्ट बनानेसे पूर्व ऐसी अवस्थामें मर गया कि उसकी ऐसी इच्छा रहनेपर भी उसको कार्यमें परिणत करनेका अवसर न मिला या अधरा काम छोडकर मर गया तो ऐसी सरतमें धर्मादा कायम करने वालेके वारिस-या वारिसोंको दस्ट कायम कर देने और दूस्टका काम पूरा कर देनेका अधिकार है मृतके उहे. शानुसार ट्रस्ट बना सकते हैं। कोई आदभी उसके प्रबन्धके लिये ज़रूरही मुकर्रर करना पड़ता है, देखो-2 I. A 145; 14 B. L R. 450.
दूस्टकी वरासत-तय हुआ कि धार्मिक संस्थाओंमें दूस्टका उत्तराधिकार उन शीपर होता है जिनपर कि ट्रस्ट कायम किया गया था, किन्तु जब कोई खास ट्रस्ट नहीं होता, तो उस संस्थाके रिवाजके अनुसार होता है। जन्ती और दुबारा ग्रांटकी सूरतमें यह कानून है कि दुबारा ग्रांटमें कोई शर्त न होनेपर वह पुराने गैर बटवारेकी रीतिके अधीन होता है। केवल इस कारणसे कि दुबारा ग्रांट हुआ है, उस समय तक पालन किये हुये उत्तरधिकारका नाश नहीं होता । जब किसी प्रकारका कोई समान मार्ग न हो, उस समय सबसे प्रथम उस संस्थाके हितपर विचार किया जाना चाहिये। अय्येश्वर्य नन्दजी साहेब बनाम शिवाजी राजा साहेब A. 1. R. 1926Mad. 84; 49 M. LJ. 568. दफा ८४६ स्त्रियां मेनेजर हो सकती हैं
कोई स्त्री केवल स्त्री होनेके कारण धर्मादेकी जायदादका प्रबन्ध करने के अयोग्य नहीं है परन्तु वह उस धर्मादेके सम्बन्धके धार्मिक कृत्य शास्त्रा