________________
धर्मादेकी संस्थाके नियम
दफा ८३३-८४३ ]
दफा ८४१ मठका मेनेजर साधु होना जरूरी नहीं है
यह ज़रूरी नहीं है कि मठका मेनेजर मी साधु हो, उसका साधु होना या न होना ज़रूरी है या नहीं यह बात प्रत्येक मठके रवाज पर निर्भर है- 14 Mad. 1; इसमें यह भी माना गया है कि कई सूरतोंमें मठाधीश विवाहा हुआ आदमी भी हो सकता है, यह सिद्ध है कि धर्मपत्नी और संतान रखने वाला श्रादमी मठका महन्त या आचार्य हो सकता है ऐसी भी किसी किसी धार्मिक संस्थाकी रवाज है । परमहंस, परिब्राजकाचार्य रामानुज वैष्णव संप्रदायमें विवाहित और सन्तान वाले पुरुष, आचार्य होते हैं। दक्षिणके गोसाइयोंमें और अन्यकई स्थानोंमें महन्त व्याह कर लेनेके कारण अपने हक़ और अधिकारोंसे बंचित नहीं होता; देखो - रामभारती जगरूप भारती गोसाई बनाम सूरज भारती हरिभारती मन्हत 5 Bom. 683,
१०२७
दफा ८४२ निजकी जायदाद
मठका महन्त अपनी निजकी जायदाद भी रखसकता है और उसकी वह जायदाद मटकी जायदाद नहीं समझी जायगी - 26 Mad. 79; लेकिन बम्बई में ऐसा माना गया है कि मठाधीशके सम्बन्धमें यह समझा जाता है कि उसके कोई निजकी जायदाद नहीं है और जब वह मठके उद्देश पूरा करने के लिये क़र्ज़ लेता है तो मठकी ही जायदाद पर लेता है। देखो - शङ्कर भारती स्वामी बनाम बेकम्पा नायक 9 Bom. 422.
दफा ८४३ महन्त की नियुक्ति और वरासत
महन्त या मठाधीश या आचार्यकी नियुक्ति हर एक खास संस्था और संप्रदायके रसम रवाजके अनुसार होती है जो हर हालतमें साक्षियों से साबित की जायगी: देखो- -11 M. I.A. 405; 9. W. R. P. C. 25; 13. I. A. 100; 9 All. 1; 10Mad.490; 70. W. N.145; साधारणतः यह माना जाता है कि महन्त या मठाधीशके चेलोंमें से कोई एक चेला, जिस चेलेको मृत या वह महन्त या मठाधीश जिसनेगद्दी या मठ आदिके सब काम छोड़ दिये हों बता गया हो या वसीयत कर गया हो तो वही बेला उसके स्थानपर बैठेगा, देखो - गणेशगिरि बनाम उमरावगिरि 1 Ben. Sel. R. 218; 7. C. W. N. 145, 5 W. R. M. A. 57; 15 0. W. N. 1014; मगर शर्त यह है कि उस तरह की नियुक्ति आस पासके उसी तरहके मठ या गद्दीके महन्त या मठाधीश मंजूर करते हों; देखो - रामजीदास महंत बनाम लच्छूदास 7 C. W. N. 145, Ben. S. D. A. 1848. P. 253; 11 Mad. I. A. 405; 11 Bom. 514; 30 I. A. 150; 16. Mad. 490; 1 All. 519; 8 W. R. P. C. 25; 6 Ben Sel. R. 262.