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धार्मिक और राती धर्माद
[सत्रहवां प्रकरण
अगर कोई महन्त या मठाधीश ज़बानी या वसीयतके द्वारा किसी चेले को अपनी गद्दी पर नियुक्त न कर गया हो तो उस सूरतमें साधारण नियम यह है कि आस पासके महन्तों या मठाधीशोंकी सम्मतिसे कोई व्यक्ति नियुक्त किया जायगा जो सब तरहसे योग्य और उचित हो, देखो गणेयगिरि बनाम उमरावगिरि 1. Ben. Sel. R. 2 ed. P. 291; 1 All. 539.
संन्यासियोंमें आमतौरसे मृतगुरुकी जायदाद चेलेको उत्तराधिकारमें पानेका हक़ नहीं माना जाता इसलिये गुरुको किसी चलेकी नियुक्ति स्पष्टकर देना चाहिये किन्तु वह नियुक्ति उसके संप्रदायके महन्तोंके विरुद्ध न हो। यदि गुरुने किसी चलेको नियुक्त न किया हो तो उसकी जायदादका वारिस, दूसरे महन्तों और सम्प्रदायके प्रधान प्रधान पुरुषों के द्वारा चुना जायगा किन्तु यह कायदा सर्व व्यापक नहीं है क्योंकि कुछ मुकद्दमोंमें रवाजके अनुसार गुरु संयासीका प्रधान चेला नुरुकी जायदादका अधिकारी हुआ जिसे मृत गुरुने नियुक्त नहीं किया था और न वह दूसरे महन्तोंके द्वारा चुना गया था मगर तो भी ज़ाहिरा तौरसे यह उचित है कि संप्रदायके लोगों के उचित मंतव्यके विरुद्ध न हो, देखो-रामधन पुरी गोसाई बनाम दलमरपुरी 14 C. W. N. 191; गोपालदास बनाम कृपाराम Ben. S. D. A. 1850. P. 250.
बड़े चेलेका हक़-मौरूसी मठके अन्तिम महन्त द्वारा किसी जायज़ नामज़दगीके न होनेपर बड़ा चेला वारिस होता है-गोबिन्द रामानुजदास बनाम रामचरनदास 52 Cal. 748; 29 C. W. N. 931; 89 I. C. 804; A. J. R. 1925 Cal 1107. . नीचे के मुकद्दमे देखो-साधारण कायदा यह माना गया है कि एक प्रदेशमें एक ही संप्रदायके अनेक और दूसरे संप्रदायोंके अनेक मठ होते हैं वे सब संप्रदायके मतभेदको छोड़कर, श्रापसमें मिले हुए रहते हैं इन भिन्न भिन्न किस्मके सम्प्रदायोंके प्रत्येक मटोंमें महन्त या मुख्याधिष्ठाता होता है
और जब उनमेंसे कोई एक महन्त या मुख्याधिष्ठाता मर जाता है तो दूसरे संप्रदायके महन्त या मुख्याधिष्ठाता मृत महन्त या मुख्याधिष्ठाताका उत्तरा धिकारी निर्वाचित करते हैं । जहांतक मुमकिन होगा वे मृतके किसी योग्य. चलेको निर्वाचित करेंगे और अगर इसका कोई भी चेला इस योग्य न हो तो दूसरे संप्रदायके किसी महन्तका कोई चेला निर्वाचित किया जायगा। मृतका स्थानापन्न नियुक्त करने के पश्चात् मृतके सम्प्रदायानुसार उस चेलेका अभिषेक (टीका) किया जायगा और दूसरी सब रसमेंकी जायगी जो उस सम्प्रदाय या पंथके लिये आवश्यक हैं। देखो-19. W. R. C. R. 215.
10 Mad. 375 वाले मुकद्दमे में माना गया कि मंहतके अधिकार अपने उत्तराधिकारी निर्वाचित करने में सीमाबद्ध हैं क्योंकि वह 'अधिनाम' या