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दान और मृत्युपत्र
[ सोलहवां प्रकरण
यनदास बनाम सरस्वतीबाई 21 L. W. 415; (1925) M. W. N. 285; 87 I. C. 621; A. I. R. 1925 Mad. 861. (१८) किसी हिन्दूने कुछ जायदादको संयुक्त वसीयत अपनी बड़ी पत्नी और पुत्री हक्रमें किया और छोटी पत्नीके हक़में अलाहिदा वसीयत किया, और मा तथा पुत्री के लिये मिलकर क़र्ज़ अदा करने की शर्त करदी । नीचेकी अदालत अपीलने तमाम परिस्थिति पर विचार कर यह निश्चित किया, कि वसीयतकर्ताका इरादा मा और पुत्री मध्य हीनहयाती मुश्तरका क़ब्ज़ा पैदा करनेका था तय हुआ कि इरादेका प्रश्न एक खास बात है और जब तक इसके विरोध में कोई शहादत न हो, तब तक इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता -- मुथुकरुप्पा मुधीरियन बनाम सिनभाग्यथमल 22 L. W. 511; 90 I. C. 880; A. I R. 1925 Mad. 33; 49 M. L. J. 358.
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(१६) 'वसीयतका इबारत' - हिन्दू स्त्री, जिसके हक़में वसीयत हो, केवल ती अधिकारही नहीं रखती - सम्पूर्ण अधिकारों का प्राप्त होना साबित माना जायगा, जब तक कि उसके खिलाफ कोई सुबूत न हो--राज मानिक चेटीयर बनाम ए० मानिक चेटीयर (1925) M. W. N. 120; 84 I. C. 902; A. I. R. 1925 Mad. 254; 47 M. L. J. 723.
( २० ) 'अधिकारों की स्वीकृति' -- पत्नी के हक़में वसीयत होनेपर सम्पूर्ण अधिकारोंकी स्वीकृति होना पत्नीको जायदाद के इन्तक़ालके लिये काफ़ी है इस तात्पर्यके लिये और अधिक व्याख्याकी आवश्यकता नहीं है -- बाई सूरज बनाम जी जी भाई भाव सांग 86 I. C. 196; A. I. R. 1925 Bom. 38.
(२१) दो पुत्रियों के हक़में दान जो भिन्न परिवारोंमें व्याही हुई हैं जायज़ है और यह समझा जायगा कि वे दोनों संयुक्त क़ब्ज़ेदार नहीं हैं तसद्दुकहुसेन बनाम रामकिशुन A. I. R. 1925 Lah. 57.
(२२) एक हिन्दूने अपनी जायदादको अपनी विधवा स्त्री और अपनी विधवा बहूको वसीयत द्वारा दिया। तय हुआ कि प्रत्येक उस जायदादपर या पूर्ण अधिकार रखती है - उमरावकुंवर बनाम सर्वजीतसिंह 85 1. C. 618; A. I. R. 1925 Oudh 620.
( २३ ) पिता द्वारा वसीयत मुश्तरका जायदादकी पुत्रोंके हक़में -- हिन्दू पिताको यह अधिकार नहीं है कि वह पूर्वजों की जायदादको वसीयत द्वारा अपने पुत्रोंमें तकसीम करे । अतएव जब कभी किसी