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दफा ८१०]
वसीयत नियम
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हिन्दू पिताने वसीयत द्वारा पैतृक सम्पत्तिको अपने पुत्रोंके मध्य तक़सीम किया तो तय हुआ कि उसका अमल बतौर वसीयतनामेके नहीं हो सकता, बल्कि बतौर परिवारके प्रबन्धके हो सकता है-सदाशिव पिल्ले बनाम शानमुगम पिल्ले A. I. R.
1927 Mad. 126. (२४) 'दो व्यक्तियों के हकमें वसीयत या हिवा'-किसी हिन्दूको मृत्युके
पश्चात दी हुई जायदाद, बतौर वसीयत या हिबा के उसकी व्यक्ति गत और ऐसी जायदाद होती है कि गोया वह उसकी स्वये उपर्जित है। अतएव जब दो या दो से अधिक व्यक्तियोंके हकमें वसीयत या हिबा किया जाय, तो उनके अधिकार केवल जीवन तकही नहीं रहते यानी एकके मरने के पश्चात दुसरे जीवित को प्राप्त नहीं होते हैं बल्कि वे अधिकार वरासत से प्राप्त होने योग्य हैं, अतएव एकको मृत्युके पश्चात, उस वसीयत या हिबा की हई जायदादका उत्तराधिकारी मुतवफ़ी का कानूनी वारिस होता है-विश्नोमल ऊधवदास बनाम लाली बाई A. I. R. 1926
Sind. 121. नोट-पाठक ! आप ध्यान रखें कि जब वसीयत में बताई हुई लाइन के में सब आदमी मर गये हों जिन्हें पूरे अधिकार न प्राप्त हों और वसीयत में उसके बाद जायदादके मिलनेका कोई ढङ्ग ने बताया गया हो तो वसयित करने वालेका उस वक्त का कानूनी वारिस उस जायदाद को पावेगा। मानो वसीयत थी ही नहीं ।
दफा ८१० हिन्दू वसीयतका काननी सम्बन्ध
लेटिनेन्ट गवर्नर बंगालके इलाओंमें या मदरास और बम्बई हाईकोटौं के इलाक़में कोई हिन्दू, जैन, सिख या बौद्ध जो तस्दीक करे (Attestation) कोई लिखत मंसूख करे ( Revocation ) या किसीका फिरसे हक्क पैदा करे ( Revival ) या किसी लिखत का स्पष्टी करण करे ( Interpretation) या वसीयत और उसके परिशिष्ट (Cudicil) का प्रोवेट ले तो इन सबसे 'इंडियन् सक्सेशन एक्ट नं० ३६ सन् १९२५ ई०' की कई दफाएं हिन्दू बिल्स् एक्ट नं०२१ सन् १८७०ई०द्वारा लागू होती हैं, देखो-9 Bom. 241.
जो वसीयत और उसका परिशिष्ट उक्त इलाकोंके बाहर लिखा गया हो किन्तु उसका सम्बन्ध उन इलाकों के अन्दर वाली किसी गैरमनकूला जायदाद से भी हो तो ऐसे वसीयतनामों और परिशिष्टों से भी वे दफाएं लागू होती हैं, देखो-9 Bom. 491.
हिन्दू बिल्स् एक्ट की दफा ३ में कहा गया है कि "वसीयत करने वालेका विवाह हो जानेसे उसकी की हुई वसीयत या वसीयतका परिशिष्ट
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