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दफा ६२३-८२४]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
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देव मन्दिरकी मूर्तिका स्वप्न देखा तब उसने वैसीही मूर्ति अपने घरमें रखी और पूजा करने लगा उसने दूसरी जातिके लोगों व ब्राह्मणोंको उस मूर्तिकी पूजा करने दी जिस तरह सार्वजनिक देवमूर्तिकी पूजाकी जाती है। वह देव मूर्तिके पुजारीकी तरह काम करता रहा, मूर्तिका चढ़ावा लिया करता था, अन्य मज़हबी रसमों में फीस लिया करता था,पूजा करने वालोंकी संख्या बढ़ती गयी। उसने मूर्ति के लिये आभूषण व जवाहरात खरीदे । मूर्ति जिस घरमें थी उस घरको बढ़ाया । जो लोग पूजाके लिये आते थे उनके ठहरनेके स्थान बनाये । मज़हबी जल्सों के लिये मूर्तिके लिये एक गाड़ी बनवाई, गांवमें धर्मशाला बनवाया, मन्दिरमें वह प्रत्येक सप्ताह जनताको बिमा फीस लिये माने देता था। हिसाब कोई रस्सा नहीं जाता था, हिसाब दाखिल नहीं किया गया। जो रु० बचता था वह उसे अपने खानदानके कामके लिये जायदाद खरीदता था। यह तय किया गया कि यदि कोई शप्त मन्दिर बनाकर जनताको उसमें पूजा करने दे और मूर्ति में चढ़ाई हुई वस्तुएं लेवे, अपने लिये घर बनावे, तो ऐसी दशामें वह मन्दिर जनताके लिये बनाया गया है यह माना जावेगा, इसमें मी कहा गया कि शूद्र भी पुजारी हो सकता है, देखो-1924 A. I. R. 44 Pri. दफा ८२४ जायदादपर बोझ - यह जरूरी नहीं है कि धर्मादेसे जिस जायदादका सम्बन्ध होउस जायदादपरसे कोई अपना पूरा मालिकाना हक मुन्तकिल करदे उस धर्मादेके खर्च का बोझ जायदादपर कायम किया जा सकता है या भामदनीका कोई हिस्सा उस धर्मादेके खर्च के लिये नियत किया जा सकता है। देखो-8 M. I. A. 66; 6 I. A. 18275 Cal. 438, 5 Cal. L. R. 296, 31 I. A. 2037 32 Cal. 129; 80. W. N. 809; 8 Bom. L. R. 765, 35 Bom. 153; 12 Bom. L. R. 584. ' जिस जायदादपर इस तरह किसी धर्मादेके खर्चका बोझ डाला गया हो, उसके साथ भी वह सब कार्रवाइयां हो सकती हैं जो साधारण जायदाद के सम्बन्धमें हो सकती हैं। देखो-13 W. R. C. R. 20; 10 W. R: C. R. 2999 2 Hay. 160. अर्थात् उस जायदादका बटवारा हो सकता है, देखो-4 Cal. 56, 12 Mad. 387-391. किन्तु वह जायदाद धर्मादेके खर्च के बोझको हमेशा लिये रहती है, वह जायदाद बेची, तथा कुर्क और नीलाम भी की जा सकती है-6 I. A. 1823 5 Cal. 438; b Cal. L. R. 296; 35 Bom. 153; 12 Bom. L. R. 584.
___ सत्यनाम भारती बनाम शरवनवागी अम्मल 18 Mad. 262. वाले मामले में यह सूरत थी कि जायदादके कुछ हिस्सेसे एक मठ सम्बन्धी धर्मादे