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दफा ८२८]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
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(७) अपनी सन्तान के लाभके लिये-एक हिन्दू ने ऐसी वसीयत की कि मेरे कुटुम्बके रहने वाले घरमें निवास रखा जाय और ज़मीन आदि से भरण-पोषण होता रहे तथा खानदान की देवमूर्ति का पूजन होता रहे। उसने अपने लड़कों और उनकी मर्द सन्तानको देवमूर्तिका-'शिवायत' हमेशा के लिये नियत किया और यह शर्त की कि वे सब घरमें रहें तथा जायदादसे लाभ उठाते रहें । वसीयतसे यह भी मालूम होता था कि बटवारा, या घरेलू विभाग या कोई इन्तकाल किली जायदाद का न हो सके इसलिये जायदाद देवमूर्ति के अर्पण कर दी गयी थी, उस हिन्दूने ट्रस्टी भी नियत किये और पीछे उसने वसीयतनामेके परिशिष्टके द्वारा अपने खान्दानके मेम्बरोंको अपने मरनेके पश्चात् छोड़ी हुई जायदाद दे दी थी। उसके मरनेपर खान्दान के मेम्बरोंने एस्टियों पर दावा किया कि जायदाद हमें दिला दी जाय । अदालतने माना कि देव मूर्तिमें लगी हुई जायदाद नाजायज़ है और बेअसर है क्योंकि उसने अपनी सन्तानके लाभके लिये सब काम किये असल में उसने देवमर्तिके पजनके लिये कोई जायदाद अर्पण नहीं की देखो-1B.L. R. 175; 20 W. R. 95-96; 15 B. L. R. Note 176-178; 15 C. W. N. 126; 5 Ben. Sel. R. 268.
(८) हमारे ठाकुरद्वाराके ठाकुरजीके लिये-यदि कोई हिन्दू ऐसे देवताके अर्पण अपनी जायदाद करे जिस देवताका कोई नाम ही न रखागया हो जैसे किसीने यह वसीयतकी कि मैं इतनी जायदाद 'अपने ठाकुरद्वारेके ठाकुरजी' के पूजन आदिके लिये अर्पण करता हूं और जिस समय ऐसा वसीयतनामा लिखा गया था या वसीयत करने वालेके मरनेके समय ठाकुर द्वारा ही न था, और न ठाकुरजी विराजमान थे तो ऐसी सूरतमें अदालत इसे अनिश्चित मानेगी और वसीयत नाजायज़ करेगी; देखो-33 All. 793 8 I. LJ. 944; 11 Indian cases 260; और भी देखो-37 Cal. 128; 33 All. 253; लेकिन अगर किसीने वसीयतके द्वारा एक ट्रस्ट बना कर अपनी जायदाद ट्रस्टियोंके हवालेकी हो और उसमें यह आज्ञा दी हो कि मेरे मरने के बाद मेरी माता के नामपर अमुक नामक देवता की मूर्ति स्थापन की जाय, और मेरी जायदादकी आमदनीकी वचत उसके पूजन पाठ आदिके कामों में खर्च की जाय तो इस तरहका दान जायज़ माना गया है यद्यपि उस मूर्ति का अभिषेक उसके मरने के पश्चात् पहले पहल होगा, देखो-ऊपरकी दोनों आनीर नज़ीरें 37 Cal. 128; 33 All. 253. दफा ८२८ धर्मादा असली होना चाहिये
जो जायदाद धर्मादे के लिये दी जाय वह सचमुच दीजाय केवल दिखाने केलिये न हो, किसी खास घराने में उसके रखे जानेकी शर्त नहीं की जा
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