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धार्मिक और खैराती धर्मादे
[सत्रहवां प्रकरण
जनक और अनिश्चित नहीं है यक्लि निश्चित है और हिन्दुओंमें बड़े पवित्र भावसे विख्यात है यह शब्द 'पवित्र दान' सूचक है, जस्टिस ऐय्यर ने प्रिवी कौंसिल की उपरोक्त राय नहीं मानी तथा उसके विरुद्ध यह राय जाहिर की कि जो दान या वसीयत सिर्फ धर्म के लिये किये गये हैं जायज़ हैं; देखो-30 Mad. 340, पीछे इसी हाईकोर्ट में जस्टिस व्हाइट, सी० ने फिर प्रिवी कौंसिल की रायका अनुसरण करके यही माना कि जो दान या वसीयत केवल 'धर्म' के लिये किये गये हों नाजायज़ हैं आजकल यही आखिरी बात मानी जाती है। इस सम्बन्ध में देखो-प्राणनाथ सरस्वती का हिन्दूलॉ, धर्मादा प्रकरण पेज १८और भी देखो-मोती बहुबाई बनाम मामूबाई 19 Bonm. 647;18 Bom. 136; 17 Bom. 351; 1 Bom. H. C. 71.
(२) सार्वजनिक या खैरातके लिये एक वसीयत में लिखा गया कि मेरी जायदाद किसी लौकिक सार्वजनिक लाभमें या किसी 'खैराती काम' में लगा दी जाय, माना गया कि 'अनिश्चित' होनेके कारण ऐसा वसीयतनामा नाजायज़ है क्योंकि सार्वजनिक लाभ और खैराती काम भिन्न भिन्न प्रकार के और अनेक होते हैं, देखो-31 Bom. 503; 9 Bom. L. R. 560.
(३) अच्छे काम या सराकम-मदरास प्रांत में 'सराकम' होता है ऐसा मालूम होता है कि इसका अर्थ है 'अच्छे काम' । जो जायदाद 'सराकम' या 'अच्छे काम' में लगा देने के निमित्त दान या वसीयत की गयी हो, नाजायज़ है-22 Bom. I. R. 774 में कहा गया कि 'अच्छे कामों' के करने को वसीयत द्वारा जो दान दिया जाय वह अनिश्चित होनेके सबबसे नाजायज़ है क्योंकि अच्छे काम अनेक प्रकार के होते हैं।
(४) धर्मादेके लिये-अगर किसी वसीयतमें जायदाद केवल 'धर्मादे' के लिये दान की गयी हो तो अनिश्चित होने के कारण नाजायज़ होगी18 Bom. 136.
(५) खास और उचित काम-एक आदमी ने यह वसीयत की कि 'यदि ऊपर बताये हुए सब कामों के समाप्त होनेपर कोई रुपया या कोई मनकला जायदाद अधिक तादाद में बाकी रहे तो, वसीयत की तामील करने घालों को आवश्यक होगा कि मेरे लाभ के लिये किसी खास और उचित कामोंमें खर्च करें' अदालत ने माना कि इस प्रकार की आशा देना अनिश्चित होने के कारण नाजायज़ है, देखो--14 Cal. 222.
(६) वसीयत करने वाले की पसन्द--एक आदमीने वसीयत की कि मेरे ट्रस्टी किसी खैरात और अच्छे कामों में जिसे वे पसन्द करें और जो वसीयत करने वाले की पसन्दके योग्य हो जायदाद लगा दें, माना गया कि नाजायज़ है, देखो--4 Bom. L. R. 893; 4 Cal. 508; 31 Cal. 895; 8 C. W. N. 653; 1 B. H. C. 73.