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दफा ८३०-८३३]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
हिन्दुस्थानमें धार्मिक बुनियादपर बेशुमार मन्दिर या देवस्थान हैं उनमें ज़मीन, गांव, नकदी, सोना, चांदी, जवाहरात आदि बहुत क्रिस्मकी जायदादे लगी हैं। आमतौरसे हिन्दूसमाजको पारमार्थिक लाभ पहुंचानेके लिये इनकी सृष्टि कीगई है । या किसी खास सम्प्रदाय या पंथके लिये स्थापित किये गये हैं इनके अलावा यति, संन्यासी, परिव्राजकोंके लिये खास तौरसे प्राचीन मठ या आश्रम निर्माण किये गये हैं । मन्दिर या मठोंके स्थापित करने से उद्देश यह है कि धार्मिक ज्ञानकी वृद्धि हो और उनके शिष्य तथा भक्तोंको उस धार्मिक ज्ञानका उपदेश प्राप्त होता रहे तथा वे धार्मिक लाभ उठाते रहें।
मठ-यदि मठमें किसी देवमूर्ति या मूर्तियों की स्थापना भी है तो उसका पूजन मठका मुख्य उद्देश नहीं बल्कि दूसरा है। मठमें दो किस्मकी संस्था होती हैं । मन्दिर और मठ ये दोनों हिन्दुओंके धर्मानुशासन विषयसे जुड़े हुये हैं मठका मुख्याधिष्ठाता महन्त या स्वामी या आचार्य आदि नामोंसे कहा जाता है उसका मुख्य कर्तव्य यह है कि संस्थाके अनुसार धर्मानुशासन करे वह स्वयं देवमूर्ति है क्योंकि विज्ञानी पुरुष सब देवमूर्ति माने जाते हैं दोनों क्रिस्मके मठोंमें पारमार्थिक ज्ञान दिया जाता है तथा भगवान्की स्तुति, पूजन पाठके लिये तथा जप, तप, यज्ञ आदिके लिये वे स्थान मुख्य माने जाते हैं।
___ मन्दिर-मन्दिर में देवमूर्ति अवश्य होती है यदि किसी संस्थाकी रवाज विरुद्ध हो तो दूसरी बात है। देवमूर्तिका पूजन मन्दिरका मुख्य उद्देश है और जो बाते ऊपर मठके सम्बन्धमें कही गयी हैं लागू होती हैं मूर्तिके पूजन करने वालेको शिवायत या पुजारी आदि नामोंसे कहते हैं, महन्त और शिवायतमें बड़ा भेद है, शिवायत यदि पागल हो जाय तो उसके हक छीन लिये जायंगे मगर महन्तके नहीं यह बात 27 Mad. 435; 2 Mad. 175; 10 Mad. 375 389. के मामलोंमें तय हुई है।
मठ, उसकी जायदाद और उसके आफिसका बटवारा नहीं होतागोविन्द रामानुजदास बनाम रामचरनदास 52 Cal. 7483 29 C. W. N. 931; 89 I. C. 804; A. I. R. 1925 Oal. 1107. दफा ८३३ देव पूजाका धर्मादा
किसी सार्वजनिक या निजकी देवमूर्तिके लिये धर्मादा कायम करना हिन्दूलॉ में मान्य है-9 Bom. 169; 9 C. W. N. 529; 13 M. I. A 270. ध्यान रहे कि धर्मादा उस देवताके लिये है न कि उसकी प्रतिमाके लिये अर्थात अगर वह प्रतिमा न रहे तो दूसरी प्रतिमा स्थापित की जा सकती है, किन्तु धर्मादा नहीं दूटता प्रतिमा न रहनेपर भी उस देवताकी शक्तिका बास उस स्थानपर रहता है।