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दफा ८२७]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
1C. L. R. 566; 6 Bom. 24; इस बम्बई वाले मामले में वसीयत करने वालेने अपने दूस्टियों को यह हुक्म दिया था कि मेरी कुछ जायदाद बेच कर रुपया जमाकर लिया जाय और वह रुपया मेरी अन्त्येष्ठि क्रिया तथा मेरी जातिके रवाजके अनुसार ब्राह्मण भोजनमें खर्च कर दिया जाय, यह भी ज़ाहिर किया था कि वर्ष के किसी खास दिवसमें ब्राह्मण भोजन कराया जाय, जायज़ माना गया, देखो-12 C. W. N. 1083.
(१२) शिवरात्रि एक आदमीने वसीयतकी कि हरसाल शिवरात्रि की रातको शिवपूजाके लिये इतनी रकम खर्चकी जाय, जायज़ माना गया; देखो-12 C. W. N. 1083.
(१३) अन्नक्षेत्र-अन्नक्षेत्र चलाने के लिये दान जायज़ है; देखो-एडवो. केट जनरल बनाम स्ट्रांगमैन ( 1905 ) 6 Bom. L. R. 56; एक आदमीने वसीयतकी कि मेरी वसीयतके तामील करने वाले जिस धार्मिक या खैराती कामको उचित समझे उसमें खर्च करें, जायज़ माना गया, देखो-31 Cal. 895; 80. W. N. G53; 4 Cal. 5083 4 Bom. L. B. 893.
(१५) पूजा-एक आदमीने वसीयतकी कि मेरे अमुक मकान में देव मूर्तिकी पूजा होती रहे और उसमें मेरे बालबच्चे भी रहा करें-जायज़ माना गया, देखो-25 Cal. 112. दफा ८२७ निम्नलिखित हालतोंके दान 'अनिश्चित' होनेसे
नाजायज़ माने गये (१) धर्म-यदि कोई दान या वसीयत केवल 'धर्म' के लिये किया गया हो और उसमें निश्चित न किया गया हो कि किस मतलबमें वह जायदाद लगाई जायः नाजायज़ माना जायगा क्योंकि वह अनिश्चित और सन्देह जनक है ऐसा दान या वसीयत नहीं करना चाहिये कि 'अभुक धन या जायदाद मैने धर्मके लिये दी' कारण यह है कि 'धर्म' शब्दका अर्थ अदालती मतलब में बहुनही सन्देह जनक और अनिश्चित है इसी सबबसे अदालतको उसके इन्तज़ाममें असुविधा होती है। देखो-रनछोड़दास बनाम पार्वतीबाई 23 Bom. 725; 26 1. A. 71; 21 Bom. 646; 30 Mad. 340.
धर्मादे का दूस्ट अदालतकी निगरानीमें रहता है इसलिये जो जायदाद दान या वसीयत की जाय, और जिस कामके लिये की जाय वे सब बातें साफ साफ और निश्चित बता देना ज़रूरी है अगर ऐसा नहीं किया गया होगा तो वह धर्मादेका ट्रस्ट रद समझा जायगा और काम में नहीं लाया जा सकेगा। इसी तरहके फैसले प्रिवी कौन्सिलके हैं मगर एक मुकद्दमे में मदरास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, सर सुब्रह्मण्य ऐय्यर ने कहा कि 'धर्म शब्दका अर्थ सन्देह