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दफा ८०]
वसीयतके नियम
(8) 'परिवार या खानदान'-इसका अर्थ माना गया कि वसीयत
करने वाले या दान करने वालेकी सन्तान और उनकी पत्नियां
देखो-4 C. W. N. 671. (१०) 'नसलन् दर नसलन्'-माना गया कि पूरा मालिक है-1 M.
H.O. 400; 24 Mad. 299. (११) 'हिस्सा और हिस्सा अलिक'-इस वाक्यसे माना गया कि उसने
पोतेको एक तिहाई हिस्सा दिया, देखो-5B.H.C. O. C.128. (१२) 'मेरा मकान'-माना गया कि खानदानके रहने वाला घर-31
Cal. 166. (१३) 'बच्चे'-इसका अर्थ केवल 'पुत्र' नहीं हो सकता, इसमें लड़की
लड़के सब शामिल हैं, देखो-20 Bom. 571. (१४) 'औलाद या सन्तान'-इसका अर्थ है पुत्र पौत्रादि, न कि भाई या
विधवा-I. M. H. C. 400; लेकिन 114 P. R. 1900 में
कहा गया कि इससे मर्द और औरतकी नसलकी संतान मुराद है। (१५) 'पुत्रसे पौत्रको'-माना गया कि पूरे अधिकारों सहित मालिक
है। देखो-28 Mad. 3633 15 M. L. J. 299. (१६) 'सम्पूर्ण आदि'-किसी हिन्दूने जो अपनी जायदादपर मालि
काना हक्न रखता था अपनी स्त्रीके हकमें वसीयतनामा लिखा। घसीयतनामेमें वसीयतकर्ता की मृत्युके पश्चात् समस्त जायदाद सम्पूर्ण अधिकारोंके सहित स्त्रीको दीगई और यह शर्त रक्खी कि उसकी मृत्युके पश्चात् जायदादकर्ताके नज़दीकी वारिसको प्राप्त हो । तय हुआ कि स्त्रीको वसीयत द्वारा जायदाद सम्पूर्ण अधिकारोंके सहित प्राप्त हो, किन्तु उसके बादकी शर्तका कोई असर न होगा-रीधूराम बनाम तेजूमल 6 Lah. L. J. 600,
86 I.C. 331, A. I. R. 1925 Lah. 281 (2). (१७) 'विधवाके मुसलमान होनेपर वसीयत'-जबकोई हिन्दू स्त्री विधवा
होनेके पश्चात् मुसलमान हो जाय और किसी मुसलमानके साथ शादी करले और इसके बाद उसकी हिन्दू बहिन उसके हकमें जायदाद वसीयत करे, सो उसके इस अधिकारमें असर नहीं पड़ता। उसी प्रकार जबकि वसीयत पाने वाली मरनेके बाद अपनी बहन को छोड़ जाय, जिसने विधवा होनेके पश्चात् इस्लाम कबूल किया हो और किसी मुसलमानके साथ शादी किया हो, तो वह उस जायदादको वरासतसे प्राप्त करती है-घनश्यामदास नारा