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दफा ८०६ - ८०१ ]
वसीयतके नियम
या भरण पोषणका हक़ रखने वाले किसी दूसरे मनुष्य या औरतका हक़ वसीयत के द्वारा नहीं मार सकता; देखो - 12. C. W. N. 808 किन्तु वह ऐसी वसीयत कर सकता है कि उसके बाद जायदाद के बटबारेमें उसकी स्त्री को कुछ हिस्सा न मिले; देखो - 36. Cal. 75, 319.
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हिन्दू अपनी जायदाद जिसको चाहे दान या वसीयतके द्वारा देसकता है मगर शर्त यह है कि अपनी स्त्री और भरण पोषणका हक़ रखने वाले दूसरे लोगोंके भरण पोषणके खर्चका अलग काफी प्रबन्ध करके उसने अपनी उस जायदादको उन सबके भरण पोषणके खर्चसे मुक्त कर दिया हो । अर्थात् उनका काफ़ी और स्थिर प्रबन्ध करनेके पश्चात् दे सकता; देखो - 17 Cal. 886; 15 Cal. 292-306; 8 Bom. H. C. A. C. 98;12 Mad. 490-494 2. M. I. A. 54-57; 10 Cal. 638.
दफा ८०७ वसीयत और दानके सिद्धांतों पर टगोर केस
जतेन्द्र मोहन टगोर बनाम ज्ञानेन्द्र मोहन गोर ( 1872 ) I . A. Sup. Vol. 47; 9, B. L. R.377; 18 W. R. C. R. 359; यह सबसे बड़ी नज़ीर हिन्दू दान और वसीयतके विषयमें है। इसमें जो सिद्धांत निश्चित किये गये, प्रायः उन्हींके आधारपर हिन्दू दान और और वसीयत तथा जायदाद आदि किसीके नाम लिखे जानेके मामलोंका फैसला होता है इस नज़ीर में नीचे लिखे लिद्धांत निश्चित किये गये हैं
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( १ ) मान लेनाकि वसीयत के द्वारा सारा हक़ दिया गया
यदि वसीयत में कोई बात इसके विरुद्ध न हों तो यह बात मान ली जायगी कि जो जायदाद किसी आदमीको वसीयत के द्वारा दी गई है उसमें उस आदमीका ठीक उतनाही अधिकार है जितना कि बसीयत करने बालेका था; देखो - 25 I. A. 1263 22 Bom. 833; 8 C. W. N. 417; अगर वसीयतनामे में कोई बात इसके विरुद्ध नहीं है तो जो जायदाद किसी श्रादमीको वसीयतसे दीगई हो और यह स्पष्ट ज़ाहिर न किया गया हो कि वह जायदाद उसको वरासतके तौरपर दी गई है तो मान लिया जायगा कि वह जायदाद उसको वरासतके तौरपर ही दी गई है; देखो - 24. 1. A. 76; 24 Cal. 834 33 Cal. 1306; 11 C. W. N. 12; 8 M. I A. 43, 33 Cal. 23.
किसी बसीयतनामे या दानपत्र के किसी अंशले चाहेयह प्रत्यक्ष मालूम हो कि किसी जायदादमें किसीको पूरा हक़ दिया गया है परन्तु सम्भव है कि उसी बसीयतनामे या दान पत्रके किसी दूसरे अन्शसे यह साबित हो कि उस जायदाद में उस आदमीको केवल उसकी जिन्दगी भर तकके लिये हक़ दिया गया है ऐसी सूरत में जिन्दगी भरका हलमाना जायगा; देखो - 28 Mad. 386.