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दफा ८०८]
वसीयतके नियम
मि० जस्टिस उडरफकी राय हुई कि जिसको जायदाद दी गयी हो उसकी नाबालग्रीकी मुद्दत तक ही आमदनी जमा हो सकती है 9G. W.N. 1033. इस बिषयमें मिस्टर मेन अपने हिन्दूलाँ 7ed. P. 571-346 में कहते हैं कि आमदनी जमा होना जायज़ नहीं है किन्तु हालके एक मुकदमे में कलकत्ता हाईकोर्टने मिस्टर जस्टिस जेनकिन्सकी पूर्वोक्त रायका समर्थन किया देखो 34 Cal. 5; 11. C. W. N. 65.
नफरचन्द कुंडू बनाम रत्न मालादेबी (1910) 16 C. W. N. 66.के मुकदमे में पुत्रके विवाहके खर्चके लिये आमदनी जमा होनेका प्रश्न था अदालतने जायज़ माना इसी तरह बम्बईमें १६ बर्षतक जायदादकी आमदनी जमा होने की वसीयत जायज़ मानी गई देखो-4 Bom. L. R. 903.
यदि किसीने अपनी जायदाद सार्वजनिक लाभके लिये वसीयतके द्वारा दानकी हो तो वसीयत करने वाला ऐसी कोई शर्त उसके साथ वसीयतमें नहीं लगा सकता कि उस जायदादका मुनाफा हमेशा जमा होता रहे या किसी सीमा रहित मुहत तक जमा किया जाय: देखो-12 I. A. 103; 11 Cal. 684; 15 I.A.37; 15 Cal. 409; 14 Bom. 360; 70. W.N.688.
इस विषयमें इन्डियन सकसेशन एक्ट नं०३६ सन् १९२५की दफा ११७ देखो-इसका सारांश यह है-"किसी जायदाद मुनाफा जमा रखनेकी जो शर्त है वह नाजायज़ है और वह जायदाद जिसे दी गयी है वह इस तरहपर अपने काममें लायेगा कि मानो उसमें मुनाफा जमा करने की शर्त थीही नहीं मगर यह माना गया है कि यदि जायदाद गैरमनकूला हो तो वसीयत करने वालेकी मृत्युके समयसे सिर्फ एक वर्षतकका मुनाफा जमा किया जा सकता है। पीछे वह जायदाद और मुनाफा खर्च किया जायगा।"
उदाहरण-(१) एक आदमीने वसीयतकी कि २००००) के गवर्नमेन्ट प्रामेसरी नोट खरीदे जायें और उनका व्याज २० बर्ष तक जमा. किया जाय । पीछे महेश, शङ्कर और रमाशंकरको बराबर देदिया जाय । ऐसी सूरतमें वसीयत करने वालेकी मृत्युके समयसे एक वर्षके पश्चात् तीनों आदमी सब रुपया बांट सकते हैं।
(२) एक श्रादमीने २००००) रु० शङ्कर को इस शर्त के साथ वसीयत किया कि वह रुपया शङ्कर को उस समय दिया आय जब उसका विवाह हो जाय । ऐसी सूरतमें माना गया कि शङ्कर वह रुपया वसीयत करने वाले की मृत्युके एक वर्ष के बाद ले सकता है चाहे उसका विवाह न मी हुआ हो।
(३) एक आदमीने वसीयत की कि सनिगवां ग्रामका मुनाफा १० वर्ष तक जमा करके शङ्कर के बड़े बेटे गणेश को दे दिया जाय । वसीयत करने वालेकी मृत्युके समय गणेश मौजूद था। ऐसी सूरतमें वसीयत करने वालेकी