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दान और मृत्युपत्र
[सोलहवां प्रकरण
अधिकार रखती हो उसकी आमदनी या उसकी बचतका रुपया वसीयतके द्वारा नहीं दे सकती मगर वह अपने जीवनकालमें उसको जैसे चाहे खर्व कर सकती है, दानके तोरपर उसे दे सकती है।
बाप मुश्तरका जायदाद वसीयत नहीं कर सकता-एक हिन्दू पिता एक वसीयत करने के पश्चात मर गया । वसीयतनामेमें उसने तीन आदमियों को अपनी जायदादके प्रवन्धक और अपने नाबालिग पुत्रका वली मुकर्रर किया। उस प्रकार नियत व्यक्तियों में से उसकी माता भी एक वली थी। उन प्रबन्धकोंने जायदादके एक हिस्से के पूर्ण अधिकार को नाबालिग की सौतेली माताके हकमें, उसकी परवरिशके लिये मुन्तक्रिल कर दिया। वह उस जाय. दादको अपने भाईके हकमें वसीयत द्वारा देकर जल्द ही मर गई। नाबालिगने बालिग होनेपर इन्तकालके मंसूरन करने और नाजायज़ कब्जेके वक्त के मुनाफे के लिये नालिश कियाः
तय हुआ (१) कि वसीयतनामा नाजायज़ था । किसी मुश्तरका खान्दानके हिन्दू पिताको मुश्तरका जायदाद के वसीयत करने और उसके द्वारा जायदादके प्रवन्धके लिये वली नियत करनेका अधिकार नहीं है । 43 Mad 8 24; 41 Mad. 561 और (२) नाबालिगके वलीको यह अधिकार न था कि वह नाबालिग की सौतेली मा के हक में, जो हिन्दूला के अनुसार केवल अपने जीवनकाल में ही परवरिश पानेकी अधिकारिणी है, जायदादका कोई हिस्सा लिख दे और उसको पूर्ण अधिकार मुन्तकिल कर दे । देइवचला आयंगर बनाम रघुपति वेंकट चारियर 22 L. W. 188 ( 1925) M. W. N. 556; 88 1. C. 967; A.I. R. 1926 Mad. 46; 49 M. L. J. 317.
जब कोई हिन्दू स्त्री ३०-४०वर्ष अपने पतिसे,मृत्युके समय तक अलाहिदा रही हो तो उसे अधिकार होता है कि वह अपने पितासे प्राप्त जायदाद को घसीयत द्वारा, अपने पतिकी रजामन्दीके बिना ही मुन्तक्रिल कर दे। भगवान लाल चुन्नीलाल बनाम बाई दिवाली 27 Bom L. R. 633; 88 I. C. 7503; A. I. R. 1925 Bom. 445. दफा ८०३ वसीयत लिखनेका क़ायदा
हिन्दू विल्स एक्ट नं०२१सन्१८७०ई० की दफार और इन्डियन सक्सेशन एक्ट नं०३६ सन् १९२५ ई० की दफा ६३ के अनुसार वसीयत लिखने घालेको चाहिये कि नीचे लिखे हुये कायदोंके अनुसार वसीयत लिखे । उक्त दफा ६३ इस प्रकार है-'फौजी सिपाही जो लाम या वास्तवमें युद्ध में शरीक हो या समुद्री मल्लाह जो समुद्र यात्रा कर रहा हो इनको छोड़कर हर एक वसीयत करने वालेको आवश्यक है कि वह अपनी वसीयत निम्न लिखित नियमोंके अनुसार लेखबद्ध करे