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दाम दुपट क्या है
दफा ७८०-७८२ ]
यद्यपि यह ५००) रु० उसी सूदके पेटे मिला है मतलब यह है कि महेश एक वक्तमें मूलधन की रक्तमसे ज्यादा सूद नहीं पासकता; थोड़ा थोड़ा करके चाहे मूलधनसे ज्यादा भी वसूल कर लिया हो तो हर्ज नहीं है । नालिशमें मूलधनकी रक्क्रमसे ज्यादा सूद नहीं पासकता । यह भी ध्यान रहे कि महेशने एक वक्तमें यदि १००१) रु० बाबत सूदके वसूल किये हों तो ऐसा वह नहीं कर सकता, कारण यह है कि दामदुपटके क़ानूनका मुख्य मतलब यह है कि कोई एक वक्तमें मूलधन से अधिक ब्याज की रक़म न ले, अर्थात् भिन्न भिन्न समय में ले सकता है मगर हर समय में शर्त यही रहेगी कि सूद की रक़म मूलधन से ज्यादा न हो ।
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ब्याज के क़ानून को रद करने वाला एक्ट नं० २८ सन् १८५५ ई० में दाम दुपटका कायदा नहीं माना गया । इस एक्ट के अनुसार लेनदारको उस कुल सूदके पानेका हक़ है जो ठहर गया हो चाहे वह मूलधनसे कितना भी ज्यादा हो, लेकिन ऐसे मामलों में दाम दुपट का क्रायदा खास तौर से लागू होता है वहां पर लेनदार किसी एक वक्त में मूलधनकी रक्रमसे ज्यादा ब्याज नहीं ले सकता, देखो - खुशालचन्द बनाम इब्राहीम 3 Bom H. C. A. C. 23; 7 Bom. H. C. O. C. 19; 3 Bom. 312, 338; 5 Cal. 867.
दफा ७८१ कहांपुर दामदुपट माना जायगा
दामदुपटका क़ायदा समस्त बम्बई प्रान्त (प्रेसीडेन्सी) में माना जायगा देखो- - नरायण बनाम सतनाजी 9 Bom H. C. 83, 85; और सिर्फ कलकत्ता शहरमें माना जायगा, देखो - नवीनचन्द्र बनाम रमेशचन्द्र 14 Cal. 781; लेकिन बंगालके और किसी भागमें नहीं माना जायगा, देखो -- हितनरा
न बनाम रामधनी 9 Cal. 871; मदरास प्रान्त में यह क़ायदा नहीं माना जाता, देखो -- 6 Mad. H. C. 400; इसी तरहपर संयुक्त प्रान्त, मध्यप्रान्त, पंजाब आदि यानी बम्बई प्रान्त और कलकत्ता शहरको छोड़कर हिन्दुस्थानके किसी भागमें यह क़ायदा नहीं माना जाता ।
दफा ७८२ दामदुपटमें मियादका क़ानून
दामदुपटके क़ायदेपर क़ानूनं मियादका कुछ भी असर नहीं पड़ता, क़ानून मियादके अनुसार क़र्जा देनेके बादसे तीन वर्षकी मियाद मानी गयी है और इससे लेनदार तीन वर्षके ब्याजका दावा कर सकता है, रक्कम चाहे कुछ हो मगर जिन मामलोंसे दामदुपट लागू होता है उनमें कोई लेनदार एक वक्त में मूलधनकी रक्क्रमसे अधिक ब्याज नहीं सकता, देखो- - 3 Boma 312, 332; 9 Bom, 233,