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दान और मृत्युपत्र
[ सोलहव प्रकरण
दफा ७९८ मृत्यु के समय दान
मरने के समय जो माल मनकूला दानके तौरपर दिया जाय उस दानसे क़ानून इन्तक़ाल जायदादकी दफा १२३ लागू नहीं होती अर्थात् ऐसे दानके लिये दान पत्र लिखना और उसकी रजिस्ट्री कराना ज़रूरी नहीं है । दानके पूरा होने की जो शर्तें ऊपर बतायी गयी हैं । यानी यह कि दान देने वाला दान दे और लेने वाला उसे स्वीकार करके उसपर अपना क़ब्ज़ा भी करले तो इन शर्तों के पूरा होने से हिन्दूलॉ मरनेके समयके दानको भी सर्वथा उचित मानता है, देखो - 6 Mad. H. C. 270; 3BL. R. OC. 1133 12 W. R. O. C. 4. किन्तु भास्कर पुरुषोत्तम बनाम सरस्वतीबाई ( 1892 ) 17 Bom. 482. के मामलेमें बापने मरते समय किसीको कुछ मनकूला जायदाद दानकी, परन्तु उसके जीवनकालमें दान लेने वालेका क़ब्ज़ा उसपर नहीं हुआ, बापके मरने के बाद उसके बेटेने उस जायदाद पर दान पाने वालेका क़ब्ज़ा करा दिया तो अदालतने माना कि दान पूरा होगया और जायज़ है ।
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2. B.L. R. O.C. 113; 12.W.R. O. C. 4 वाले मामले में एक मरने वाले हिन्दूने, गवर्नमेन्ट प्रामेसरी नोट अपने लड़केके देनेके लिये इस तरह कहा - "नोट बाहर निकाल लावो और मेरे लड़केको देदो ।" उसने उन नोटों पर न तो अपने दस्तखत किये और न उसको दस्तखत करनेके लिये सूचित किया गया था । पीछे जब उससे कहा गया कि नोटोंपर दस्तखत कर दो तब उसने कहा कि मैं बहुत कमज़ोर हूं मैं कैसे इतने नोटोंपर दस्तखत कर सकता हूं. जब मुझे थोड़ी ताक़त श्रजावेगी मैं उनपर दस्तखत कर दूंगा तुम किस वास्ते इतने उत्सुक हो रहे हो” हिन्दूलॉके अनुसार यह मृत्यु संनिकट दान जायज़ है। क्यों किजीवित पुरुषों के मध्य हिन्दूलॉके अनुसार दान जायज़ माना जाता है; इस कारण उन नोटों का मूलधन और सूद भी पुत्रको पहुच चुका न कि सिर्फ नोटों के क़ाराज । यहांपर एक बात सदैव ध्यान रखने योग्य है कि गवर्नमेन्ट प्रामेसरी नोट बिना इन्तकाल के दस्तखत किये भी दानके इस तरीक़े के अनुसार जबकि वह मृत्यु शय्यापर था और इतना अशक्त था कि दरख्वास्त न करसकता था सिर्फ ऐसीही सूरत में ऐसा दान जायज़ हो सकता है दूसरी सूरतों में नोटों के इन्तक़ालका तरीका यही है कि इन्तक़ाल के दस्तखत ज़रूर ही करना चाहिये, केवल उनके दे देनेसे इन्तक़ाल नहीं समझा जावेगा । इस मामले में बापने सिर्फ नोट तो दिये किन्तु दस्तखत नहीं किये। इसके विरुद्ध 5 Bom 277; 12 Bom. 573; में कहा गया कि बिना दस्तखत किये गवर्नमेण्ट प्रामेसरी नोटों का इन्तकाल पूरा नहीं माना जाता है। एक औरत जब कि मृत्युशय्या पर पड़ी थी उसने दानकी एक लिखत लिखी ऐसी लिखत aataकी तरह साबित करना चाहिये और यह भी सावित