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दफा ८०० ]
दानके नियम
देखो - 15 Bom 543. अगर दान किसी औरतने दिया हो तो साबित करना पड़ेगा कि वह औरत दान देनेके समय अपने सत्र अधिकार और दानके सम्बन्धमें क्या करना चाहिये वे सब बातें जानती थी, देखो -- 17 Ail. 1; 21 IA. 148; जब जालसाज़ी के आधार पर कोई दान मंसूत्र करनेके योग्य हो और वह जालसाज़ी या ग़लतीले या अचानक पैदा हो गई थी तो अदालत विचार करेगी कि दान मंसूख करने योग है या नहीं; देखो - M. HC. 393
जब दान देने वालेने, दान लेने वाले पर यह विश्वास करके दान दिया हो कि दानके बदले में वह अमुक काम करेगा और फिर उसने वह काम न किया या बिना पूरा किये छोड़ दिया तो दान मंसूख हो जायगा N. W. P. 5; एक बात और ध्यान रखना चाहिये कि क़ानून इन्तक़ाल जायदाद एक्ट नं० ४ सन् १८८२ ई० की वह दफाएं जिनमें कि दानकी मंसूखी के विषयका वर्णन है हिन्दूला से लागू नहीं होतीं ।
नोट - - दान उस समय मंसूख हो जायगा जब कि स्पष्ट रूप से यह साबित हो, कि दानमें जालसाजा की गयी है या जबरदस्ती की गई है या दान देने वाला उस जायदाद का पूरा मालिक न था लेने वाला मौजूद न था या लेने वालेने दान मंजूर नहीं किया या दानकी हुई चीज परसे दान देने वालेने अपना कब्जा नहीं हयया या देने वाले की मंशा दूसरी थी या लेनदारोंका रुपया मारने की गरज से दान किया गया या यदि गैरमनकूला जायदाद का दान है तो उसकी रजिस्ट्री नहीं कराई गयी, या वे सब बात जो कानूनन् पूरा करना चाहिये था नहीं की गयीं, श्यादि कारणांसे अदालत दानको मंसूख कर देगी और अदालत इस बातपर ध्यान नहीं देगी कि जो पक्षकार यह साबित करता हो कि विधिपूर्वक दान नहीं दिया गया या वे सब धर्मकृत्य जो शास्त्रानुसार जरूरी थे नहीं किये या वर्ण भेदसे दान अनुचित है या स्त्री दान नहीं ले सकती या पंडितजी ने संकल्प पढने में गलती की थी या दानमें नीच ऊंच कुलका ख्याल नहीं किया गया, या वैसे दान देनेका पर्व अथवा मुहूर्त नहीं था इत्यादि ।
बम्बई हाईकोर्ट में एक दान का मामला यह था । प्रपितामहने एक ज़मीनका दान दिया था, दान लेने वालेकी ४ चार पुश्तें उस दानकी जमीनको भोग करते बीत गयीं। पांचवीं पुश्तका पुरुष लावारिम़ मर गया तब दान देने वालके प्रपौत्र ने दावा किया कि जमीन दान देने वालेके खानदान में वापस आना चाहिये जिसका हक़दार में हूं । इस मामले में कठिन प्रश्न यह उठा है कि क्या दानकी चीज दान देने वालेके खानदानमें कभी लौट सकती है ? और क्या दान देने बालेका उस चीज पर कोई स्व बना रहता है ? देखो – जब दाताका इरादा दानसे दान पाने वाले और उसकी सन्तानको लाभ पहुंचाना होता है, तब उसी सूरत में जब कि दान पाने वाले की वंश परम्परा नष्ट हो जाती है तभी वह दानदी हुई जायदाद दान देने वालके वंशजों को प्राप्त होती है। फीर बनाम रमजान 82 P. R . 1918 ; 68 P. R. 1911; 84 P. R. 1909; 12 P. R. 1872; 13 P. R. 1914; Relon. 4 P. R. 1916 Not foll; A. I. R. 1927 Lahore 67.