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बटवारा -
[आठवां प्रकरण
अचल साबित न की जाय तब तक स्त्रियां न बट सकने वाली जायदादकी वरासतसे बंचित नहीं रखी जासकतीं, इससे यह स्पष्ट है कि यदि कोई पुरुष सन्तान रहित हो तो विधवा आदि वारिस हो सकती हैं, देखो-5 I. A. 61; 1 Mad. 312; 5 I. A. 149; 4 Cal. 190. दफा ५५६ मिताक्षराकी ज्येष्ठ लाइन
मिताक्षराला द्वारा शासित न बट सकने वाली जायदाद जब उत्तराधिकारके क्रममें उतरती है तो खूनके लिहाज़से सबसे नज़दीकी कोपार्सनर को नहीं मिलती बक्लि ज्येष्ठ लाइनके सबसे नज़दीकी कोपार्सनरको मिलती है, देखो -32 I. A. 261; 28 Mal. 508; 10 C. W. N. 95; 7 Bom.L. R. 907.4 Mad. 250; 16Mad. 11; 23 I.A. 128; 19 Mad. 451:11 I. A. 51; 10 Cal. 511; 20 I.A.773 20 Cai. 649.
___ इस उदाहरणमें झाको छोड़कर बाकी सब कोपासेनर हैं। न बट सकने वाली मौरूसी जायदाद इस वक्त अ, के पास है अ, के तीन पुत्र, दो पौत्र और दो प्रपौत्र तथा एक प्रपौत्रका पुत्र मौजूद है। अ,की ज्येष्ठ लाइन में क, घ, ज, झ, हैं।
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(१) अ, मरा तो सब जायदाद अकेले क, को मिलेगी इसमें सन्देह नहीं है। मगर ऐसा मानो कि क, पहिले मरा और पीछे अ, मरा तो फिर जायदाद घ. उसके पोतेको मिलेगी जो सब पोतोंमें ज्येष्ठ है, अगर क. घ. दोनों पहिले मर गये पीछे अ, मरा तो सब जायदाद उसके ज्येष्ठ प्रपौत्र, ज, को मिलेगी।
(२) यदि क, घ, ज, पहिले मर गये पीछे अ, मरा तो अब ज्येष्ठ लाइन के हिसाबसे तो सब जायदाद झ, को मिलना चाहिये मगर आज तक कोई मुक़द्दमा ऐसा देखने में नहीं आया कि जिसमें, पुत्र, पौत्र, प्रपौत्रके मरनेके बाद बुद्ध प्रपितामह अपने प्रपौत्रके पुत्रको छोड़कर मरा होऔर उनके बीचमें ऐसा झगड़ा पैदा हुआ हो। मिताक्षरालॉ के अनुसार ऐसी कोई जायदादही नहीं है कि जो एकही किसी वारिसकी खास सन्तानमें रहे इसलिये माना यह गया है कि जब ऐसी हालत हो तो ख, को सब जायदाद मिलेगी क्योंकि सबसे नज़दीकी कोपार्सनर वही है। मिताक्षरामें दो बातें कही गयी हैं ज्येष्ठ लाइन