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रिवर्जनरोके अधिकार
दफा ६७४ ]
मरके बादवाला रिवर्जनर था यानी फकीरे चौधरी के भाईका लड़का था । प्रारंभिक अदालतसे दावा खारिज हुआ मगर इलाहाबाद हाईकोर्ट से पूरा fडकरी होगया। पंचामतनामा मन्सूख होगया और तय होगया कि ललताबाई के मरनेके बाद इसका कुछभी असर बाकी न रहेगा। हाईकोर्ट अपीलका नं० ५६ सन् १९११ ई० और फैसला ता० १४ फरवरी सन् १९१४ ई० है । प्रिवी कौंसिल अपील होने पर बाकी सब फैसला इलाहाबाद हाईकोर्टका मान लिया गया मगर इतना बदल दिया गया कि "मुद्दई और मुद्दालेह नं० ८ से ११तक एक तरफ और बाक़ी लोग दूसरी तरफके आपसमें इनमें इस फैसलेकी पावन्दी रहेगी" इसका सारांश यहथा कि फकीरे और ललताबाई पाबंद रहेंगे । पीछे ललताबाई मरी और उस वक फकीरे जीवितथा अब प्रश्न यह पैदा हुआ कि फकीरेको वह जायदाद मिलेगी या इस्टापुलका नियम लागू होगा । फकीरेको एक तिहाई जायदाद मिल चुकीथी वह उस पर क़ाबिज़ भी था । इस प्रश्न पर बड़ा मतमे नजीरोंमें है-अभी तक जो साफ तौर पर इस विषयमें तय हुआ है वह यह है कि यदि रिवर्जनरको जायदादका कोई हिस्सा बतौर हेवानामा यानी दानरूपसे मिला हो तो ऐसी शकल में इस्टापुल का नियम रिवर्जनरके विरुद्ध लागू नहीं होगा । अर्थात् किसी सीमावद्ध वारिसने कुछ जायदाद रिवर्जनरको बतौर दानके देदी और कुछ दूसरे रिश्तेदारको दे दी या अपने ही पास रखी तो रिवर्जनरका भावी हक़ मारा नहीं जासकता, देखो - 25 Bom. L. R 813, 24 Mad. 819; 71 I. C. 237; मिलता हुआ केस देखो - 1924 Mad. 177 ( P. C. ); 17 All. L. J. 536.
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पुत्र पाबन्द होंगे - अब बापके इक़में इस्टापुलका नियम लग जाताहो तो पुत्रभी उसके पाबन्द होंगे, देखो- - 19All. L. J. 799.
महादेवप्रसाद मुद्दई बनाम माताप्रसाद वगैरह मुद्दालेह 19 All LJ. 1921 Page 799 में यह माना गया था, जो बढ़ाही जरूरी समझा गया कि पृथ्वीपालसिंह आखिरी पूरा मालिक जायदादका था उसने अपनी विधवा मु० गजराजकुंवर और लड़की बलराज कुंवर को छोड़कर वफात पाई । १५ अक्टूबर सन् १८६७ ई० को मुग् वलराज कुंवरने एक पट्टा इस्तमरारी माताप्रसाद और देवी सहायके हक़में लिखा जिसका नज़राना २०००) रु० लिया । रुपया सब रजिस्ट्रार के सामने दिया गया। सूरजपालसिंह उस समय रिवर्जनर था उसने पट्टामें अपनी गवाहीकर दी। तारीख २६ अक्टूबर सन् १९०१ई०को मु० बलराजकुंवर और ठा० सुरजपालसिंह दोनों ने मिलकर एक दानपत्र ( हिबा ) उस जायदादका लिखा जो पट्टेमें दी गई थी और उसीके हक़में लिखा जिसे पट्टा दिया गया था । इस दानपत्रके अनुसार दाखिल खारिज नाम का हुआ जिसमें सूरजपालसिंहका हलफ पर इजहार हुआ और उसने हिबाको दुबारा मंजूर किया । बलराजकुंवर तारीख ६ सितम्बर सन् १९०६ को मर गयी। मंड