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[ दसवां प्रकरण
के मरनेके समय जो जायदाद जिस हालतमें थी उसी हालतमें वह जायदाद पानेका अधिकारी है। विधवाके किसी नियम विरुद्ध जायदादका पट्टा आदि देनेके कारण अगर किसी दूसरे आदमीने जायदाद में तरक्क़ी की हो तो रिवर्ज़नर उसका बदला देनेका ज़िम्मेदार नहीं है वह पट्टेदारले ज्यों की स्यों जायदाद छीन लेगा --इस विषय में नज़ीर देखो - ब्रजभूषण बनाम दयाराम
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रिवर्जनर
( २ ) इस्टापुल (Estopple) से हक़का चला जाना
इस्टापुल (Estopple) का नियम - इस्टापुल (Estopple) के लिये देखो दफा ११५क़ानून शहादत । यह नियम उस समय लागू होता है जब सीमावद्ध वारिसके जीवनकालमें उसके रिवर्जनर ( देखो दफा ५५८ ) ने किसी लिखत के ज़रिये से या अपनी कारगुज़ारीके ज़रिये ले या किसी दूसरे तरीक्नेसे यह इक़रार कर लियाहो या ऐसा माना जासकता हो कि उस रिवर्ज़नरने अपने होनेवाले इको कुछ लेकर छोड़ दिया, या कुछ जायदाद का हिस्सा सीमाबद्ध वारिस की जिन्दगी में ले लिया और बाक़ी हिस्सा उसे दे दिया, या कोई पंचायतकी जिसमें उस रिवर्ज़नरको, सीमावद्ध वारिसके जीतेजी कुछ दिला दिया गया और बाक़ी जायदाद के मालिक दूसरे क़रार दियेगये या वही सीमावद्ध वारिस पूरा मालिक बना दिया गया तो उस सीमावद्ध वारिसके मरनेपर अगर वही रिवर्ज़नर बाक़ी रहे जिसने कुछ हिस्सा किसी प्रकारसे पा लिया है तो फिर उसको, वह जायदाद नहीं मिलेगी जो सीमाबद्ध वारिसने छोड़ी है । इस्टापुल का क़ानूनी मंशा यह है कि अपने इक़रारकी पाबन्दी या अपने फेल की पाबन्दी | किन्तु यह इस्टापुलका नियम आसान नहीं है बड़े गम्भीर विचार का है:
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इस दूसरे संस्करण के संशोधन करते समय मुझे एक मुक़द्दमे में इसी इस्टापुलके नियमपर बड़ी गम्भीरता से विचार करना पड़ा और इस समय तककी प्रायः सभी नज़ीरोंके तात्पर्य के जानने की आवश्यकता पड़ी। भगवानदास बनाम ललताबाई नम्बर प्रारंभिक ३०३ सन् १६१० ई० सबजज कोर्ट जिला बांदा (यू०पी०) का मामला था वाक़ियात यह थे । यह कि अयोध्याप्रसाद के मरने पर उसकी लड़की ललताबाई अपने बाप की जायदादपर सीमावद्ध अपने जीवनकाल तककी अवधिकी मालिक हुयी । ललताचा ईके मरनेपर उसकी जायदादका रिवजनर फकीरे चौधरी था जो अजोध्याप्रसादके भाई का लड़का था । ललताबाई और फकीरे चौधरी और अन्य कुछ फरीकोंने मिलकर एक पंचायतनामा लिखा । पंचोंने यह तय किया कि एक तिहायी हिस्सा फकीर चौधरी को ललताबाई या सलोनी के मरने पर दे दिया जाय और दो तिहाईपर ललताबाई का पूरा अधिकार रहे। सलोनी, ललताबाईके भाईकी विधवा थी । पंचायती फैसला मंसूख कराने के लिये, भगवानदासने यह दावा किया। भगवानदास रिवर्ज •