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स्त्रियोंके अधिकार
पररषा प्रकरण
हक़के त्यागकी रजिस्ट्री ज़रूरी नहीं है--रजिस्ट्रेशन ऐक्ट ( कानून रजिस्ट्री ) में कोई भी ऐसा आदेश नहीं है जिसके अनुसार किसी विशेष मामलेको तहरीरमें लाने की आशा हो, उस कानूनकी केवल यह मन्शा है कि जब चन्द मामले तहरीरी हों, तो उस तहरीरकी रजिस्ट्री होनी चाहिये। कानून इन्तकाल जायदाद ( Transfer of Property Act ) में या किसी अन्य कानूनमें भी कोई ऐसी बात नहीं है जिसकी यह मन्शा हो कि गैर मनकूला जायदादसे महज़ अधिकारका त्याग करना भी तहरीरी होना चाहिये। हिन्दू विधवा द्वारा उसके अधिकारका त्याग, किसी प्रकारका इन्तकाल नहीं है, बल्कि एक अधिकारका केवल त्याग है जिसेकि भावी वारिस अपने अधिकारमें प्राप्त करता है किन्तु इसलिये नहीं कि विधवा द्वारा उसे कोई इन्त. काल किया गया है। इस प्रकारका त्याग बिना किसी तहरीरके किया जा सकता है किन्तु यदि वह त्यागमें लाया जाय, तो कानून रजिस्ट्रीकी दफा १७ के अनुसार उसकी रजिस्ट्री अवश्य होनी चाहिये--गौरीवाई बनाम गयावाई A. I. R. 1927 Nag. 44.
विधवा द्वारा, अपनी परवरिशके लिये कुछ सालाना एलाउन्स और रहने के लिये मकानके बजाय अपने अधिकारोंके त्यागका समझौता करना प्रभावजनक और जायज़ है--गौरीवाई बनाम गयावाई A. I. R. 1927 Nag. 44.
दफा ७११ संसार त्यागनेवाली स्त्रीका हक़ चला जाता है
जब विधवा या कोई दूसरी स्त्री मालिक संसार त्याग दे (साधू, सन्यासिनी आदि ) तो उसी समय रिवर्जनरको सब जायदाद मिल जाती है, देखो Ben. S. D. A. (1856 ) P. 695. दफा ७१२ वसीयतके अनुसार अधिकार
जब कोई हिन्दू विधवा या दूसरा सीमाबद्ध वारिस वसीयतके अनुसार जायदादका वारिस होता है तो उसके अधिकार वसीयतकी शतों के साथ होते हैं; देखो--चन्द्रमनीदासी बनाम हरीदास मित्र 5 C. L. R. 157. अगर वसीयतमें सिर्फ उसे जायदाद देदी गयी हो और कोई अधिकार न बताया गया हो तो फिर उसके अधिकार वही होंगे जो कानूनमें लिखे हैं। दफा ७१३ अदालतसे मिला हुआ अधिकार
अगर किसी स्त्री मालिकको जायदादके इन्तकालकी इजाज़त प्रोवेट एण्ड एडमिनिस्ट्रेशन एक्टकी दफा ६० के अनुसार मिली हो तो चाहे कानूनी ज़रूरत हो या न हो और चाहे रिवर्जनरसे मंजूरी लीगयी हो या न लीगई