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भरण-पोषण
[बारहवां प्रकरण
ऐसा भी कहागया है कि जब विधवा अपने भरणपोषणके लिये वारिसों के विरुद्ध सब उपाय करके हार गयी हो, या यह बात अच्छी तरह से साबित करदे कि बेची हुई जायदादके सिवाय और दूसरी कोई जायदाद भरणपोषण का खर्च देने के लिये वारिसोंके हाथमें नहीं है तभी वह उस जायदादके खरी. दारसे भरणपोषणका खच पा सकती है, देखो--अमीरनी नारायण कुमारी बनाम शोनामाली 1 CA1.865; 2 Agra 134; 25 W. R.C. R. 100. परन्तु इस कार्रवाई में जो असुविधायें हैं उन्हें बम्बई हाईकोर्टने स्पष्ट कर दिया है 2 Bom. 494,
भरतपुर स्टेट बनाम गोपालदेयी 24 All. 160. में कहा गया है कि विधवाका भणपोषण पानेका हक़ जायदादपर उस समय तक अनिश्चित है जब तक कि उसके एसे खर्च पानेकी डिकरी जायदादपर न होजाय या उस जायदादके सम्बन्धमें कोई इक़रार न हो जाय पूर्वजोंके जिम्मेका क़र्ज, पुत्रोंके यज्ञोपवीत, कन्याओंके विवाह आदि ऐसे काम हैं जिनके खर्च अदा करनेके पाबन्द जायदादके वारिस हिन्दूलॉके अनुसार हुआ करते हैं, परन्तु कोई नेकनीयत खरीदार इनका पाबन्द नहीं होसकता 12 Bom. H. C. 69.
अपने जीवित पतिकी जायदादके खरीदारपर स्त्रीका अपने भरणपोषण के पाने का कोई हक़ नहीं है, परन्तु अपने मृतपतिकी जायदादके खरीदारपर विधवाका अपने भरण पोषणके पानेका हक़ उपरोक्त सूरतोंके अनुसार होता है 12 Bom H.C. 69-78. दफा ७४४ दौरान मुक़दमे में जायदादका इन्तकाल
भरण पोषणके दावेके मुक़द्दमेके दौरानमें अगर जायदादका इन्तकाल किया जाय तो भरण पोषणके हकपर ऐसे इन्इक़ालका कुछ असर नहीं पड़ता, देखो-जायदाद इन्तकालका क़ानून एक्ट नं०४ सन् १८८२ ई० की दफा ५२, और देखो-27 Cal.77; 4 C.W.N. 254; 27 Cal.551; 4 C.W.N 764.
हां अगर वह इन्तकाल किसी ऐसे क़र्जके अदा करनेके लिए कियागया हो जिसका अदा करना भरणपोषणका खर्च देनेसे पहिले ज़रूरी हो तो बेशक उस इन्तकालका पाबन्द वह फरीक़ भी होगा जिसने भरणपोषणके पानेका दावा किया हो देखो-थिमन्नाभट्ट बनाम कृष्णतन्त्री 29 Mad. 508, अगर भरणपोषणका खर्च किसी खास जायदादपर डालनेका दावा न किया गया हो तो सभी जायदादपर उसका असर रहेगा, देखो-19 Mad. 271
भरणपोषणके मुक़द्दमेके दौरानमें अगर सिर्फ दिखाने के लिये ज़रासी जायदाद छोड़कर बाकी सब इन्तकाल करदी गयी हो, और जो जायदाद छोड़ दी गयी हो उससे वह खच निकल ही न सकता हो तो ऐसी सुरतमें खरीदार जिम्मेदार समझा जासकता है।