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बेनामीका मामला
[ चौदहवाँ प्रकरण
है कि जब तक दगाबाज़ी की नीयतका वास्तवमें उपयोग न किया जाय तब तक असली मालिकका हक़ जायदाद वापिस पानेका मारा नहीं जाता, देखो35 I. A. 98-103; 23 Bom. 406; 22 Mad. 323; 33 Cal. 967; 38 Bom. 10; 20I. C. 50.
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इस सम्बन्धमें इण्डियन ट्रस्ट एक्ट नं० २ सन १८८२ ई० की दफा ८४ भी देखो - इस दफाका मतलब यह है कि 'जहांपर जायदादका मालिक जायदाद को दूसरे के हक़में ऐसे गैर क़ानूनी मतलब के लिये इन्तक़ाल करदे जो काम न लाया जा सकता हो तो जिसके हक़में इन्तक़ाल किया गया है उसे चाहिये कि इन्तक़ाल करने वाले के लाभ के लिये जायदादको अपने पास रखे' ।
( ४ ) फरेबी डिकरीमें-जब किसी बेनामीदार ने असली मालिक के विरुद्ध अदालत में दावा करके साज़िशी डिकरी इसलिये प्राप्त की हो कि असली मालिकके लेनदारोंका रुपया मारा जाय तो उस डिकरीका पाबन्द असली मालिक होगा ।
उदाहरण -- 'क' ने एक मकान 'ख' के नामसे इस मतलब से खरीदा कि वह मकान मेरे लेनदारोंके दावासे रक्षित रहे और खुद उस मकान में 'ख' का किरायेदार बनकर रहने लगा, पीछे 'क' और 'ख' दोनों ने मिलकर अदालत से डिकरी प्राप्त की; अर्थात् 'ख' ने 'क' पर क़ब्ज़ा पानेका दावा किया और एक तरफा डिकरी प्राप्त कर ली; ऐसी सुरतमें 'क' उस डिकरीका पाबन्द है, अब वह डिकरीको रद्द नहीं करा सकता तथा 'ख' को अधिकार है कि 'क' को उस मकानसे निकलवादे और मालिकाना क़ब्ज़ा व दखलकर ले, देखो -- 11.Bom. 708; 10 Mad 17 ऐसी डिकरीमें भी 'क' के लेनदार दखल दे सकते हैं -- 3 Bom. 30.
दफा ७७८ असली मालिक पाबन्द रहेगा
यदि कोई बात विरुद्ध न हो तो बेनामीदारकी तरफसे नालिश करने में, अदालत यह ख़्याल करेगी कि उसने असली मालिकके पूरे अधिकारों सहित यह नालिश दायर की है और जो फैसला उस नालिशका होगा उसका पाबन्द असली मालिक भी उतनाही होगा अर्थात् ऐसा माना जायगा कि मानो वह नालिश असली मालिक ने की थी, देखो - गोपीनाथ बनाम भगवन्त 10 Cal. 697-705; 15 Mad. 267; 29 Cal. 682; 30 All. 30; 22 Bom. 672.
उदाहरण - 'क' ने एक मकान 'ख' के नामसे खरीद किया, खरीदने के समय वह मकान 'ग' के क़ब्ज़े व दखल में था । 'ख' ने 'ग' पर नालिश की कि उस मकानका क़ब्ज़ा व दखल मुझे दिला मिले ( मानलो कि ) मुक़द्दमा डिस्मिस् हो गया । पीछे 'क' ने इस बयानके साथ गं' पर नालिश की कि मकान का असली मालिक मैं हूँ 'ख' का नाम बेनामीदार है, और 'ख' ने अपने मुक