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स्त्री-धन
[ तेरहवां प्रकरण
हैं, देखो--दयाल दास लाल दास बनाम सावित्री बाई 34 Bom. 385; 12 Bom. LL. R. 386; सीताबाई बनाम वसन्तराव 3 Bom. L. R. 201; 9 Bom. 115.
यदि पुत्र और लड़कियां न हों तो पहिले लड़कियों की संतान पीछे पुत्र की संतान होती है । अपना दूसरा विवाह करने के समय पति जो धन हरजानेके तौरपर पहिली स्त्रीको दे उसकी वरासतका कायदा भी यही है, अर्थात् लड़कियों के होते पुत्र वारिस नहीं होंगे।
(३) यौतक स्त्रीधन-यौतक स्त्रीधन सबले पहिले कुमारी लड़कियों को मिलता है इसके पश्चात् बराललका का संभवतः मिताक्षराका है परन्तु ऐसा कहा गया है कि आसुर विवाह के समय रिश्तेदार जो कुछ धन दें वह दूसरे रिश्तेदारोंके न रहने की सूरत में उसके घुमको मिलेगा।
(४) भर्तृदत्त स्त्रीधन-जो पतिने प्रसन्नतासे या दानमें दिया हो और अन्वाध्येयिक स्त्रीधन नीचेके क्रमके अनुसार मिलेगा।
१ -- लड़के और कारी लड़कियां दोनों साथ साथ आपसमें बराबर
हिस्सा पावेंगे, देखो--34 Bom. 385; अगर कारी न हों तो२-लड़के और ब्याही हुई लड़कियां दोनों आपसमें बराबर हिस्सा
पावेगी जब लड़के और लड़कियां न हों तो३ - लड़की की लड़की, और लड़की के लड़के साथ में बराबर
पावेंगे-पीछे ४-पौत्र ५-ऊपरके वारिसोंके न होनेपर(क) अगर ब्राह्मविवाह हुआ हो और कोई संतान न हो तो शुल्कके
सिवाय सव स्त्रीधन उसके पतिको मिलेगा उसके न होनेपर
पतिके वारिसोंको। (ख) अगर आसुर विवाह आदि कोई विवाह हुआ हो तो पहले
माता उसके बाद स्त्रीका बाप उसके बाद स्त्रीके बापके वारिस
पावेगे। (५) दूसरे प्रकारके स्त्रीधन-दूसरे प्रकारके स्त्रीधनकी बरासत इस
प्रकार होगी--(१) पुत्र ( २ ) पौत्र (३) प्रपौत्र (४) बेटियां (५) बेटीका बेटा (६) बेटी की बेटी (७) इनके न होनेपर
'भर्तृ दत्त स्त्रीधन' का क्रम माना जाता है। दूसरे प्रकारसे जो स्त्रीधन प्राप्त हुआ हो वह लड़कियोंके होते भी, पुत्र, पौत्र और प्रपौत्रको मिलेगा-देखोनीलाल रेवादत्त वनाम रेवाबाई