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भरण-पोषण
( बारहवां प्रकरण
Vol. I. P. 172, 175 Vol. 11. P. 39; कोलबूक डाइजेस्ट Vol. II. P. 423, 425; और देखो याज्ञवल्क्य -
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हृताधिकारां मलिनां पिण्डमात्रोपजीविनीम्
परिभूता मधःशय्यां वासये दव्यभिचारिणीम् । विवाह०७०
या व्यभिचरति तां हृताधिकारां भृत्यभरणादि अधिकाररहितां । मलिनां अञ्जनाभ्यंञ्जन शुभ्रवस्त्राभरणा शून्याम् पिण्डमात्रोपजीविनीम् प्राणयात्रामात्र भोजनीम् । धिक्कारादिभिः परिभूतां भूतलशायनीं स्ववेश्मन्येववासयेत् वैरान्य जननार्थ नपुनः शुद्धयर्थम् । मिताक्षरा ।
जो स्त्री व्यभिचारिणी हो उससे भरणपोषणका अधिकार छीन ले । साफ कपड़े जेवर तथा भोगरागकी जो चीजें हैं उसे नहीं दे, सिर्फ भूखे मरने से बचानेके लिये भोजन दे, और धिक्कार आदिसे उसे अपमानित करे, सोनेके लिये चारपाई आदि न दे, ज़मीनपर उसे सुलाये और अपने घर के करीब रहने का स्थान दे, ये सब बातें उसे वैराग्य उत्पन्न कराने वाली हैं शुद्ध करनेवाली नहीं हैं।
यदि स्त्री व्यभिचार न त्यागे तो उसे प्राणनिर्वाहका भी खर्च न मिल सकेगा। परन्तु यदि उसे पहिले अदालतकी डिकरीसे खर्च मिलने का हक़ पैदा हो गया हो तो व्यभिचार करने पर भी वह खर्च बन्द नहीं किया जायेगा, देखो - कंडासामी पिलाई बनाम मुरूगम्मल 19 Mad. 6; 17 Cal. 674–679; 15All. 382; 2 Mad. H. C. 337; 34 Bom. 278; 12 Bom. L. R. 196; 1 Bom. 559.
दफा ७३२ बारसुबूत
जब किसी जायदादपर विधवा के भरण पोषणके खर्चका बोझ हो और विधवा अलग रहकर खर्च मांगती हो तो इनकार करने वाले दूसरे फरीको यह साबित करना होगा कि हालत ऐसी है कि जिसमें विधवा अलग रहकर खर्च पानेका अधिकार नहीं रखती, देखो - साबूसद्दीक़ बनाम ऐशबाई 30 I. A. 127; 27 Bom. 485; 7 C. W. N. 666; मसलन दूसरा फरीक़ यह दिखला सकता है कि, विधवा व्यभिचारके उद्देशसे अपने पति के घरसे अलग रहना चाहती है, देखो -- 3 Bom. 372-381; या यह कि जायदाद बहुत