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दफा ७२८]
खर्च पानेका अधिकार आदि
रहता है देखो - गजाधर बनाम कौसिल्ला 31 All. 161. व्यभिचार करने से विधवाका भरण पोषणके पानेका हक़ नष्ट हो जाता है, देखो - 17Mad 392; 7 Bom. 84, 9 Bom. 108; 17 Cal. 674. दौलत कुंवरि बनाम मेघू तिवारी 15 All. 382; 5 Mad. H. C. 150; 7 I. A. 115-151; 5 Cal.776-786; 6 Cal. L. R. 322; 13 B. L. R. 1-72-73; 19 W. R. C. R.367-405; 2 Mad. H. C. 337; 4 Mad. H. C. 183. याज्ञवल्क्य इस विषय में कहते हैं कि
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पुत्र योषितश्चैषां भर्तव्याः साधुवृत्तयः निर्वास्या व्यभिचारिण्यः प्रतिकूलास्तथैवच । दाय० १४२
एषां त्रीवादीनामपुत्राः पत्न्यः साधुवृत्तयः सदाचारावेद्भर्तव्याः भरणीया । व्यभिचारिण्यस्तु निर्वास्याः । प्रतिकूलास्तथैवच निर्वास्याभवन्ति भरणीया श्राव्यभिचारिण्यश्चेत् । नपुनः प्रातिकूल्य मात्रेण भरणमपि न कर्तव्यम् ।
मिताक्षराकार कहते हैं कि--इन नपुंसक आदिकोंकी जो स्त्रियां साधु वृत्ति वाली हों (सदाचार और पवित्र ) उन्हें भरण पोषण देना योग्य है और जो व्यभिचारिणी हों अथवा सदाचारसे विरुद्ध आचरण करती हों तो उनकों घरसे निकाल दे, यानी जो व्यभिचारिणी न हों वह पालन करने योग्य हैं । यदि कोई स्त्री जो व्यभिचारिणी न हो और सदाचार की प्रतिकूलता भी न करती हो मगर किसी दूसरी वजहसे उससे और उस पुरुषसे जिसपर उसके भरण पोषणका हक़ है परस्पर बिगाड़ हो तो विधवाका वह हक़ नष्ट नहीं होगा ।
अगर किसी समझौते या डिकरीसे ऐसा हक़ उसे दिया गया हो तो भी व्यभिचारसे नष्ट हो जाता है। लेकिन अगर वसीयतके द्वारा वैसा हक़ मिला हो और उस वसीयतमें व्यभिचार के कारण हक़ वर्जित न किया गया हो तो स्त्रीके भरण पोषणका हक़ नहीं मारा जायगा, देखो -- 17 Mad. 392 9Bom. 108; 15 All 382; 34 Bom. 278. अगर भरण पोषण के सिवाय किसी और चीज़के दावेके बदले में समझौता करके भरण पोषण के खर्च देने का इक़रार किया गया हो और उसमें व्यभिच रसे वर्जित होने की कोई शर्त न हो तो भी भरण पोषण का हक़ मारा नहीं जाता, भूपसिंह बनाम लक्ष्मण कुंबर 26 All 321.