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दफा ७०६]
स्त्रियों की वरासतकी जायदाद
बनाम रामकृष्ण अम्मा ( 1910) 34 Mad. 288; परन्तु आजकल प्रायः सभी मामलोंमें दान जायज़ नहीं माना जाता क्योंकि ऐसा दान विधवाके लाभके लिये समझा जाता है, देखो-कार्तिकचन्द बनाम गौरमोहनराय IW. R. C. R. 48.
किसी विधवा ने अपने पतिसे प्राप्त जायदादके कुछ भागको हिसः कर दिया और तत्पश्चात् अपनी सम्पूर्ण जायदादको भावी वारिसके हकमें समर्पण कर दिया। तय हुआ, कि भावी वारिसका मुन्तकिल शुदा जायदाद के क़ब्ज़ेके हासिल करनेकी नालिशका अधिकार, विधवाकी मृत्युके पश्चात् होता है। इन्तकालके किसी मावजेके लिये होने या न होनेके कारण कोई अन्तर नहीं पड़ता। प्रफुल्ल कामनी राय बनाम भलानीनाथ राव 52 Cal. 1018.
विधवा द्वारा दान-विधवा द्वारा किसी खान्दानी पुरोहितके दान का जायज़ होना उसकी तादाद पर निर्भर है अर्थात् वह समस्त जायदाद का कौनसा हिस्सा है। ईश्वरीप्रसाद बनाम बाबूनन्दन शुक्ल L.R.6 All. 2913 88 I.C. 1939 47 All. 563. A. 1. R. 1925 AII. 495.
यह स्पष्ट है कि अगर जायदादका बहुतसा हिस्सा किसी देवमूर्ति के लिये दान किया जाय तो अवश्य नाजायज़ होगा, देखो-चूडामणीदासी बनाम वैद्यनाथ नायक 32 Cal. 473; रामकवलसिंह बनाम रामकिशोरदास 22 Cal. 506; त्र्यंबक प्राचार्य बनाम महादेवरामजी 6 Bom. H. C.0. C. 15 और यह भी माना गया है कि अगर रिवर्ज़नरकी मंजूरी से किया गया हो तो जायज़ है, देखो-ब्रजनाथ बनाम माटीलाल 3 B. L. R. O. C. 92.
तालाब खुदाना, कुंआ बनवाना आदि यद्यपि अच्छे काम हैं परन्तु यह कानूनी ज़रूरत नहीं मानी गयीं इसी से जायदादका इन्तकाल इन बातों में नाजायज़ होगा।
(२) कर्जा प्रदाकरना-पिछले पूरे मालिकके कर्ज अदाकरना कानूनी ज़रूरत है इसी तरहपर उसकी डिकरीके अदा करनेके लिये मी, देखो-देवीद्रयाल साह बनाम भानुप्रतापसिंह 31Cal. 433; 8 C. W. N. 4087 जयन्ती बनाम अलामेलू 27 Mad.45; लक्ष्मण रामचन्द्र जोशी बनाम सत्यभामावाई 2 Bom. 494; महेश्वरवकससिंह बनाम रतनसिंह 23 L. A. 57; 23 Cal. 766% फेलाराम बनाम बगलानन्द ( 1910 ) 14 C. W. N. 895; 11 Bom. 325% [उस मालिकके ऐसे कर्ज जिनके अदा करनेके लिये कोई दूसरी व्यवस्था न हो 7 W. R. C. R. 450.]
आखिरी पूरे मालिकके जजोंके देनेके लिये विधवा या कोई स्त्री मजसूर नहीं की जासकती कि वह उस जायदादकी आमदनीसे देवे यानी नाय