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स्त्रियों के अधिकार
[ग्यारहवां प्रकरण
दादकी आमदनी से अदा करना या न करना उसकी इच्छा पर निर्भर है, देखो-रामासामीचट्टी बनाम मांगेकरासू 18 Mad. 113.
. जो कर्ज कानून मियादसे या किसी दूसरे कानूनसे तमादी हो गये हों उनके अदा करने के लिये विधवा जायदादका इन्तकाल कर सकती है क्योंकि मृतकका कर्जा अदा करना धार्मिक कर्तव्य है, देखो-चिमनाजी गोविन्द बनाम दिनकर 11 Bom. 320; कांडप्पा बनाम सुब्बा 13 Mad. 189; 21 Cal. 190; भाऊवाबाजी बनाम गोपालमहीपति 11 Bom. 325; जो कर्ज बुरे कामों के वास्ते लिये गये हों उनके लिये वह जायदादका इन्तकाल उसी सूरत में कर सकती है जब कि अदालत मज़बूर करे। कर्ज अदा करने में सब लेनदारों के साथ एकसा बर्ताव होना चाहिये, उनमें से किसीके साथ खास रियायत नहीं होना चाहिये, देखो--रङ्गील बनाम विनायक विष्णु 11 Bom, 666.
कर्ज अदा करने के लिये यह जरूरी नहीं है कि लेनदार अदालत में दावा करके जब दबाव डालें तभी कर्जे अदा किये जायें (केहरिसिंह बनाम रूपसिंह 3 N. W. P. 4). लेकिन फिर भी किसी तरहका दवाव ज़रूर ही होना चाहिये।
खान्दानी ज़रूरतके लिये विधवा द्वारा लिये हुये कर्जकी पाबन्दीभाषी वारिसपर है । वेंकय्या बनाम एम० बंगरय्या A.I.R. 1925 Mad. 401 (2).
दस्तावेज़में कानूनी ज़रूरतके ज़ाहिर करनेसे कानूनी ज़रूरत प्रमाणित नहीं होजाती। मु. राजकुंवरि बनाम रानी महराज कुंवर A. I. R. 1925 Oudh 243.
किसी विधवाकी जायदादके इच्छित या अनिच्छित इन्तकालके सम्बन्ध में जब कि रकम किसी पहिलेके कर्जके चुकाने में लगाई गई हो, वही सिद्धांत लागू होंगे। यदि पहिलेका कर्ज इस प्रकारका हो कि उसकी पाबन्दी केवल विधवा पर पड़ती हो, तो महज़ उसका हक मुन्तक़िल हो जायगा। किन्तु यदि कर्जकी पाबन्दी पतिकी जायदाद पर भी हो तो उस व्यक्तिके हक में, जिसको इन्तकाल किया गया पूर्णाधिकार मुन्तकिल हो जायगे । ईश्वरी प्रसाद बनाम बाबूनन्दन शुक्ल 47 All. b63; L. R. 6 All. 291; 88 I. CL 1935A. I. R. 1925 All. 415.
(३) सरकारी मालगुज़ारी आदि-सरकारी मालगुजारी अदा करने के लिये या ऐसा सरकारी देन चुकानेके लिये जिसके न चुकानेसे जायदाद खतरेमें पड़ती हो कानूनी ज़रूरत है, देखो-श्रीमोहनझा बनाम व्रजबिहारी मिश्र 36 Cal. 753; मेकनाटन हिन्दूला 2 Vol. 293; किसी सरकारी डिकरी के चुकानेके वास्ते चाहे वह डिकरी उस स्त्री पर ही हुई हो कानुनी ज़रूरत है। 36 I. A. 138; 31 All. 497; 11 Bom. L. R. 911