________________
५८
'त्रियों के अधिकार
[ग्यारहर्वा प्रकरण
कानूनके अनुसार गम्भीर और पर्याप्त समझा जाता है। सन्तोषकुमार मलिक बनाम गनेशचन्द्र A. I. R. 1927 Cal. 160.
पतिकी जायदाद के कुछ भागका इन्तकाल उसकी आत्माके लाभ के लिये जायज़ है-जव आमदनी काफ़ी न हो, तो समस्त जायदादकी इन्तकाल की इजाज़त, किसी ऐसे कार्यके लिये है जो पतिकी आत्मा की मुक्तिके लिये आवश्यक समझा जाय । मु० तहेल कुंवर बनाम अमरनाथ A.I. R. 1925 Lah. 2.
और अन्य ऐसे धार्मिक कृत्योंका करना कि जिनका करना पिछले पूरे मालिक पर लाज़िमी था जैसे उसकी मा की श्राद्ध; 11 B. L. R. 418; 10 W. R. C. R. 309.
तीर्थयात्रा-अपने पतिकी आत्माके लाभके वास्ते विधवा तीर्थयात्राके लिये या गयामें श्राद्ध करने के लिये जो खर्च करे वह कानूनी ज़रूरत है, देखो-मोहमद अशरफ़ बनाम बजेसरीदासी 11 B. L. R. 118; 19 W. R... R.426. 11 B. L.R.416%20W.R.C. R.1873 तारिणीप्रसाद चटरजी बनाम भोलानाथ मुकरजी 21 Cal. 1903; गनपत बनाम तुलसीराम 36 Bom. 88; 13 Bom. L. R. 860; 2 C. L. R. 474.
यह माना गया है कि कोई स्त्री अपनी आत्माके लाभ लिये तीर्थयात्रा में जो खर्च करे वह कानूनी ज़रूरत नहीं है, देखो-हरीमोहन अधिकारी बनाम अलकमणिदासी | W. R. C. R. 252; हरीकृष्ण भगत बनाम बजरंगसहायसिंह 13 C. W.N. 544, 547; (चाहे यह यात्रा भी उसीके पतिके लाभके लिये हो तो भी कानूनी ज़रूरत नहीं मानी गयी, 5 Mad. 552.)
तीर्थयात्रासे लौटकर ब्राह्मण भोजन कराने के लिये जो खर्च हो यह कानूनी ज़रूरत नहीं है इसलिये वह इस कामके वास्ते जायदादका इन्तकाल नहीं कर सकती, देखो-माखनलाल बनाम ज्ञानसिंह (1910) 33 All. 255.
विधवा द्वारा, अपने पतिके क़र्ज़ चुकाने, तथा उसके क्रिया कर्म करने के लिये गैरमनकूला जायदादका बेचना जायज़ है क्योंकि ये कानूनी आवश्यकतायें हैं । बाई सूरज बनाम जीजीबाई भावसांग 86 I. C. 196. A. I. R. 1925 Bom 38.
दान-पुराने मुक़द्दमोंमें यह जायज़ माना गया था, कि पतिकी जायदादका थोडासा हिस्सा विधवा ब्राह्मणोंको या किसी देवमूर्ति को दान कर सकती है, देखो-जगजीवन नाथोजी बनाम देवशंकर काशीराम Borr. 3949 कपर भवानी बनाम सेवकराम शिवशङ्कर 1 Borr. 405; रामकवलसिंह बनाम रामकिशोरदास 22 Cal. 506. और देखो हालके एक मुक़द्दमे में भी जायदाद का थोडासा हिस्सा दान किया गया था वह जायज़ माना गया, ततैय्या