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दफा ७०६ ]
स्त्रियोंकी घरांसतकी जायदाद
किसी हिन्दू विधवाने अपनी पुत्री की शादीके समय अपनी पुत्री और उसके पति के हक़ में, अपनी जायदाद के १२ आानेका हिस्सा हिबा कर दिया । तय हुआ कि पुत्री की शादी प्रधान कर्तव्य है और हिन्दूलॉकी | खर्च करने की व्यवस्था केवल हिदायतके तौर पर है न कि हुक्मके तौर पर, और उसमें उचित व्यवस्था करनेकी भी राय है । जब कि शादी भावी वारिसोंके पिता और पूर्वजों की इच्छानुकूल हुई और उन्होंने उसमें भाग लिया तथा हिबानामे की तस्दीक़ की, तो वह अनुचित नहीं समझा जासकता । सैलबाला देव बनाम बैकुण्ठनाथ घोष 91 I. C. 186; A. I. R. 1926 Cal. 486.
व्याह के समय बेटीको दान--- मिताक्षरालॉके अनुसार चलने वाले पुरुषकी विधवा अपनी बेटी के विवाह के समय पतिकी जाग्रदादका कुछ हिस्सा बेटीको दान कर सकती है मगर शर्त यह है कि वह हिस्सा जायदाद के अनुसार उचित तादाद में हो, देखो -चूड़ामणि शाह बनाम गोपी 37 Cal. 1-8, 13 C. W. N. 994-999; रामसामी एय्यर बनाम बेगड्डुसामी पेयर 22 Mad. 113; [ यह भी माना गया है कि वह दान जायदादकी एक चौथाई से ज्यादा न होना चाहिये ] बंगाल स्कूलमें भी ऐसाही अधिकार स्वीकार किया गया है, वहां पर बेटीको दान देना धर्मकृत्य माना गया है बेटीको ऐसा दान दुरागमन ( गौना ) के समय भी दिया जा सकता है, देखो - 37 Cal. 1; 13 C. W. N. 994; व्याह के समय दामादको भी ऐसा दान दिया जा सकता है. 22 Mad. 113; में जायज़ माना गया है । इसी सम्बन्धमें और देखो -- इस किताबकी दफा ६०२, ४३०, ६७७, ७०२.
किसी अलाहिदा हिन्दू की विधवा द्वारा, जो मिताक्षराके आधीन हो, पुत्रीको दहेज देनेके लिये किये हुये इन्तक़ालपर कोई एतराज़ नहीं हो सकता, शर्ते कि मामले की परिस्थितिके लिहाज़ से वह उचित इन्तक़ाल हो । यह व्यर्थ है कि आया इन्तक़ाल विवाह संस्कारके पूर्व या पश्चात् किया गया । उदयदत्त बनाम अम्बिकाप्रसाद A. I. R. 1927 Oudh 110.
(८) पति के भाई के लड़केकी लड़की का व्याह-- जब कि कोई मनुष्य किसी जायदादको उत्तराधिकारसे या जीवित रहने के कारण प्राप्त करता हो, तो वह वाध्य होता है कि उन व्यक्तियोंकी परवरिश करे, जिनकी परवरिश अन्तिम अधिकारी पर निर्भर थी । स्त्री वारिसको भी खान्दान सदस्योंकी परवरिश के लिये उतनी ही पावन्दी है जितनी कि किसी पुरुष वारिस पर उस जायदाद के उत्तराधिकारके कारण होती है । यह प्रतिबन्ध राजाके ऊपर भी लागू होता है जब कि वह जायदादको जन्ती या दण्ड स्वरूपमें लेता है । दर असल उस मनुष्यका, जो वारिस होता है, यह कर्तव्य है, कि खान्दानी साझीदार या ऐसी खान्दानी सदस्योंकी, जिनकी परवरिश के लिये वह क़ानूनन् वाध्य है, परवरिश, शिक्षा, व्याह, श्राद्ध और दूसरे धार्मिक कार्यों का