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स्त्रियोंके अधिकार
[ग्याररवा प्रकरण
दादका कोई हिस्सा खानदानी फायदेके लिये मी मुन्तकिल नहीं कर सकती 14 M. L. J. 139. के फैसलेमें जज इस बातसे सहमत थे कि बड़ी विधवा दूसरीकी मेनेजर या एजेन्ट मानी गई थी। इस प्रकारका परिणाम केवल ऐसी दशामें निकाला जा सकता है जब विधवाओं में आपसमें अनबन न हो, किन्तु ऐसी सूरतमें जब उनमें आपस में विरोध हो, यह असम्भव है-वाल्लूरू अप्पालासूरी बनाम कन्नम्मा 22 L. W. 287; (1925) M. W. N. 622; 90 I. C. 8817 A. I. R.1926 Mad. 6849 M.L. J. 479. दफा ६९३ जायदादमें इजाफा
जब कोई सीमावद्ध स्त्री मालिक, जायदादमें इज़ाफ़ा इस नीयतसे करे कि वह इज़ाफ़ा जायदादका भाग समझा जाय तो वह इज़ाफ़ा चाहे उस रक्रमसे किया गयाहो जिसपर स्त्रीका पूरा अधिकार था, उस स्त्रीके मरने पर जायदादके वारिसको मिलेगा न कि स्त्रीके वारिसको । अगर कोई मकान जायदाद की ज़मीनपर बनाया जाय तो उसके विषयमें यही माना जायगा कि वह जायदादका एक भाग समझा जानेकी नीयतसे बनाया गया था, देखो--कट नरासिंभ अप्पाराव बहादुर (राजा) बनाम वेंकट पुरुशोथामा जगन्नाढ़ा गोपालाराव बहादुर (राजा सुरेनानी) ( 1908) 31 Mad. 321; फकीरा डोबी वनाम गोपीलाल 6 C. L. R. 66.
विधवा-धनका जमा करना-इज़ाफ़ा जायदाद-हिन्दू विधवाको अपने पतिसे प्राप्त हुई जायदादकी आमदनीको खर्च करने का पूर्ण अधिकार है। वह या तो उसे खर्च कर सकती है या अपने लाभके लिये जमा कर सकती है। उस सूरतमें जब विधवा जायदाद खरीदे, और उसकी कार्यवाहीसे यह विदित हो कि वह जायदाद उसके पति की जायदादका भाग बन जाय, तव घरासतका सिलसिला उस जायदादके सम्बन्धमें भी पतिकी जायदादकी तरह परही होगा और वह जायदाद इजाफ़ा जायदाद हो जायगी। जब उसका यह इरादा न हो, उस सूरतमें उसका उस जायदादपर सम्पर्ण अधिकार होता और वह उसे जिस प्रकार चाहे बेच सकती है या जिसे चाहे दे सकती है और भावी वारिसोंको उसके द्वारा किये हुये इस प्रकारके इन्तकालपर एतराज़ करनेका कोई अधिकार नहीं रहता।
इजाफा जायदाद--जब उसकी कार्यवाही या तर्ज अमल द्वारा उसकी नीयतकी कल्पना करनेका प्रश्न होता है उस दशामें यह माना जाता है कि उसने उस जायदादको अपने सम्पूर्ण अधिकारमें अपने पूरे फायदे या सम्पूर्ण इन्तकालके अधिकार सहित रखनेकी नीयत रखी थी। जब जायदाद पति द्वारा प्राप्तकी हुई नहीं होती, तव इस प्रकारकी नीयतकी कल्पनाकी आवश्यकता नहीं होती, कि आया वह उस जायदादको अपने पतिकी जायदादका