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दफा ६६३-६९४ ]
स्त्रियोंकी वरासतकी जायदाद
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भाग बनाना चाहती थी। उसकी मृत्युके पश्चात् उसकी जायदादका उत्तरा. धिकार उसी प्रकार होता है जिस प्रकार स्त्री धनका-अघेश्वरानन्दजी बनाम शिवाजी राजासाहेब A. I. B. 1926 Mad. 84, 49 M. L. J. 568..
- यह प्रश्नकि आया अमुक जायदाद, इजाफा जायदाद (Aceretion) है नीयतका प्रश्न है, किन्तु विरुद्ध शहादत न होने की सूरतमें आमदनी द्वारा खरीद की हुई जायदाद, इजाफ़ा जायदाद है--मु० तहेलकुंवर बनाम अमरनाथ A. I. R. 1925 Lah. 2. दफा ६९४ जायदादकी आमदनीपर अधिकार
- जायदादकी जो आमदनी विधवा या दूसरी सीमाबद्ध स्त्री मालिकके हाथमें जमा होगी अर्थात् जब किसी सीमाबद्ध स्त्रीको जायदाद उसके गुज़ारे के लिये या ज़िन्दगी भरके लिये मिली हो और उस जायदादकी आमदनीकी बचत चाहे विधवा या दूसरी स्त्रीने अपने पास रखी हो या ऐसी आमदनी किसी दूसरे आदमीके पास जमा की हो या उस बचतसे कोई दूसरी जायदाद खरीदी हो तो ऐसी रकम या जायदादपर विधवा और दूसरी स्त्रीका पूर्ण अधिकार रहता है। यानी वह अपने किसी भी काममें उस रक्कम या जायदाद को खर्च कर सकती है और उसे रेहन बय भी कर सकती है और जिसे वह देना चाहे दे सकती है। देखो-दफा ६६१.
एक ज़मीदारीका मालिक अपनी नाबालिग्रीकी हालतमें अपनी विधवा माताको छोड़कर मर गया। जायदाद वास्तव में कोर्ट आफ वार्डके प्रबन्धमें धी, और बादमें उसका प्रबन्ध अदालतके रिसीवरोंके हाथमें था। उसने (विधवा माने ) एक वसीयतनामा लिखा, जिसके द्वारा उसने गवर्नमेन्ट प्रामिज़री नोट और जायदादकी कुछ नदीको पृथक किया।
तय हुआ कि अपने पुत्रकी मृत्युके पश्चात् उसे अपने जायदाद और उसकी आमदनी पर ताहयात अधिकार होगया था, और आमदनीके अन्दर उस लगे हुये मूलधनका सूद भी शामिल है जो पुत्रकी मृत्युके पहले जमा किया गया है । उस आमदनीपर उसका ताहयात अधिकार था। उस आमदनी को या उसके किसी हिस्सेको, वह जबकि वह उसकी अधिकारिणी थी, बतौर इजाफ़ा जायदादके यदि वह चाहती जमा कर सकती थी। इस प्रकार की शहादत न होने पर कि उसने कभी उसे बतौर इजाफ़ा जायदाद जमा किया था, वह इस बातकी अधिकारिणी थी कि उसे बजरिये वसीयत या अन्य रीतिसे काममें लाती। यह भी तय हुआ कि वह अपने पुत्रकी मृत्युके पश्चात् उन प्रामिज़री नोट्स या दूसरी लागतोंकी, जो कि रकमके स्वरूपमें जायदादके सम्बन्ध में कोर्ट आफ वाईससे प्राप्त हुये थे और जिसे कि उसने
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