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स्त्रियों के अधिकार
[ग्यारहवां प्रकरण
यदि विधवाको अपने पतिसे वसीयत द्वारा कोई अधिकार मिला हो तो वह उस अधिकारको काममें लासकती है। देखो-मोतीलाल बनाम रत्ती राम 21 Bom. 170.
पतिसे पाये हुये माल मनकूलापर विधवाके पूर्ण अधिकारका उल्लेख मयूखमें स्पष्ट और निश्चित रूपसे नहीं किया गया है ( 32 Bom. 59,9 Mad. L. R. 1305). परन्तु कई अदालतोंकी नजीरें हैं कि मयूखके अनुसार विधवा या अन्य कोई भी स्त्री जो माल मनकूलाकी वारिस हो अपने जीवनकालमें उस मालको जैसे चाहे दे सकती है अर्थात् ( Dispose ) खर्च कर सकती है-लक्ष्मीबाई बनाम लक्ष्मण मोरोबा 4 Bom. H. C. O.C; 250-1623 11 Bom. 285. बलवन्तराक बनाम परसोत्तम 9 Bom. H. C. 99-111. तुलजाराम मुरारजी बनाम मथुगदास bBom.662. दामोदर माधौ जी बनाम परमानन्ददास 7 Bom. 155-163; और देखो-1Bom.H.C.56. ____ मयूखकी इसी बातके सम्बन्धमें मिस्टर मेनने अपने हिन्दूला की दफा २५७ पेज ३२२ और पेज ८७० में कहा है कि-"हिन्दू गृहस्थका मुखिया साधारणतः जिन आवश्यक और उचित मतलबों या कामों के लिये कोई खर्च करता है बस उतनेही सीमा तक स्त्रीका अधिकार मनकूला जायदादके खर्च करने का समझना चाहिये" कितनेही सूरतोंमें माल मनकूला इस तरहका हो सकता है कि उसे दूसरी शकलमें तब्दील किये बिना (बेचें बिना) उसका लाभ विधवा नहीं उठा सकती ऐसी सूरतों में विधवा उसे बेच सकती है, और दूसरी शकलमें तब्दील कर सकती है परन्तु मूलधन विधवाको ज्योंका त्यों बनाये रखना पड़ेगा। हां यदि उस मनकूला जायदादकी आमदनी उसके भरण पोषण के लिये सामान्यतः काफी न हो तो वह उस माल मनकूलाके मूलधनको खर्च भी कर सकती है, धार्मिक कामोंके लिये भी वह उसका एक उचित भाग खर्च कर सकती है-नृसिंह बनाम वेंकटाद्रि 8 Mad. 290. गदाधरभट्ट बनाम चन्द्रभागाबाई 17 Bom. 690-703-704.
मिथिला स्कूल के अनुसार वह विधवा जिसके सन्तान न हो, गैरमनकूला जायदादको रेहन, बय नहीं करसकती परंतु जब विधवाको अपने पति से उत्तराधिकारमें मनकूला जायदाद मिली हो तो उस पर विधवा का पूर्ण अधिकार है उसे वह जिस तरहपर चाहे इन्तकाल करे या किसी को दे दे. यानी अपनी मरज़ीके अनुसार इन्तकालकर सकती है, देखो-विरजिनकुंवर बनाम लक्ष्मीनारायन महता 10 Cal. 39255 W. R. C. R. 141. दफा ६८७ वसीयत ज़बानी जायज़ है लिखित नहीं
जिस जगह स्त्रीको यह अधिकार है कि वह उत्तराधिकारमें मिली हुई जायदादको ज़बानी वसीयत द्वारा किसीको दे दे, वहां भी उसे यह अधिकार