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सफा ६८७-६८६]
स्त्रियों की वरासतकी जायदाद
नहीं है कि वह लिखित वसीयत द्वारा किसीको देजाय । विधवा, पतिकी गैरमनकूला जायदाक्को, उचित क्रजेके चुकाने के लिये भी उस जायदादका इन्तकाल नहीं कर सकती है (5 Bom. L. R. 314) अगर ज़बानी वसीयत से वह जायदाद किसीको न दे गयी हो तो उसके मरनेके बाद, उसके बादके चारिसको वह जायदाद मिलेगी।
यह संदेह हो सकता है कि जबानी वसीयत तो जायज़ माना जाय और अगर वह लिखित वसीयत कर जाय तो नाजायज़ क्यों हो जायगा हम इस विषयको विस्तार से दूसरी जगह कहेंगे यहां पर यही समझ लीजिये कि कानूनकी एक विचित्र बात है। यह स्पष्ट है कि षडाल और बनारस स्कूल में ऐसा नहीं होता। दफा ६८८ बटवारासे मिलीहुई जायदाद
बटवारा करानेमें जब कोई जायदाद मा या दादीको मिली हो तो उसमें उनका कैसा हक्र है इस बातके लिये देखो प्रकरण ८. दफा ६८९ जायदादपर स्त्रीके अधिकारकी समस्या
अदालतोंमें इस बातपर बड़ा पादविवाद हुआ है कि विधवा या दूसरी किसी सीमाबद्ध उत्तराधिकारिणी स्त्रीको मिली हुई जायदाद में उस विधवा या स्त्रीका स्वार्थ ( Interest) या हक्क किस प्रकारका समझना चाहिये। माना यही गया है कि सारी जायदाद विधवा या दूसरी सीमाबद्ध उत्तराधिकारिणी स्त्रीको पूरी तरह प्राप्त है (22 Bom 984), वही उस जायदादकी प्रतिनिधि या मालिक है, देखो-भालानहाना बनाम प्रभूहरी2 Bom. 67; 73, 74, ( 1909) 36 I. A. 138, 31 All. 497, 13 C. W.N. 1117: 11 Bom. L. R. 911.
उसके अधिकारमें उस जायदादका पूरा कब्ज़ा और उसकी कुल आम. दनी भी है, जायदादकी आमदनीको वह जैसे चाहे खर्च करे कोई उससे उसका हिसाब नहीं मांग सकता परंतु वह उस जायदादके शरीर (मूल)को नष्ट नहीं कर सकती और न जायदादका किसी तरह इन्तकाल कर सकती है सिवाय उस सूरतके जब कि (कानूनी ज़रूरतें दफा ६०२) उचित ज़रूरतों के लिये ऐसा करे, या अपने पश्चात्के होने वाले वारिसकी उचित मंजूरी (देखो दफा ६८२-६ तथा ७०८) को प्राप्त करके इन्तकाल करे । जायदाद के लाभके लिये या उचित ज़रूरतों के लिये (देखो दफा ६०२, ६७७ ) जो कुछ खर्च हो वह जायदादसे लिया जायगा । स्त्री मालिक, के जीवनकाल में दूसरे किसी का भी स्वार्थ उस जायदादमें नहीं होता । समस्त वादविवाद का सार यह निकला कि जायदादमें ऊपर कही हुई विधवा या स्त्री मालिकका स्वार्थ