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- उत्तराधिकार
[नयां प्रकरण
दफा ६४६ गोत्रज सपिण्ड और सगोत्र सपिण्डमें क्या फरक है ?
गोत्रज सपिण्ड और सगोत्र सपिण्डमें यह फरक है कि गोत्रज सपिण्ड उसे कहते हैं कि जो मृत पुरुषके घराने यानी गोत्रमें पैदा हुये हों। और सगोत्र सपिण्ड वह कहलाते हैं जो विवाहके द्वारा मृत पुरुषके गोत्रमें आते हैं, जैसे बहन आदि गोत्रज सपिण्ड हैं, क्योंकि वह मृत पुरुषके गोत्रमें पैदा हुई है, और चाची सगोत्र सपिण्ड है । क्योंकि उसका सम्बन्ध विवाहके द्वारा मृत पुरुषके गोत्रसे हुआ है, यही फरक इन दोनों में है। इसी तरहपर सब रिश्तेदारोंको समझ लेना। दफा ६४७ बम्बई प्रान्तमें गोत्रज सपिण्डोंकी विधधाएं वारिस
होती हैं ... गोत्रज सपिण्डोंकी विधवाओंकी वरासतका क्रम नीचे लिखे क्रमके अनुसार होता है । मगर गोत्रजसपिण्डकी कोई भी विधवा बहन से पहिले जायदाद नहीं पाती। इस बातको मानते हुये गोत्रजसपिण्डकी विधवायें अपने पतियों के क्रमानुसार वारिस हेाती हैं। लेकिन इन विधवाओंका वारिस होनेका हक़ उस वक्ततक नहीं पैदा होता जबउक कि उनके पतियोंकी शाखा वाले मर्द गोत्रजलपिण्ड न मर जायें। गोत्रजसपिण्डोंकी विधवाओंका हक इस प्रकार माना गया है
गोत्रज सपिण्डोंको विधवाओंके वरासत पाने का क्रम
लड़केकी विधवा | पोतेकी विधवा १५ | परपोतेकी विधवा
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लड़का पोता परपोता मृतपुरुषकी विधवा | लड़की लड़कीका लड़का
मा | बाप भाई भाईका लड़का
चापकी विधवा-मृत पुरुषकी
सौतेली मा भाईकी विधवा भाईके लड़केकी विधवा
१७
दादी
AM
बहन