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रिवर्जनर .
[दसवां प्रकरण
विधवा द्वारा इन्तकालकी तारीख पर फर्जी भावी वारिस की स्वीकृति असली भावी वारिसको बाधा नहीं पहुंचाती। एक के हकमें किया हुआ समर्पण, सबके हक़में किये हुये समर्पणके समान नहीं है-मजय सन्नय्या बनाम शेषगिरी शम्धुलिंग 49 Bom. 187; 85 I. C. 207; A. I. R. 1925 All.985.भावी वारिसके अधिकारके खतरेको दूर करनेकी नालिश-परिणाम का प्रभाव भावी वारिसपर व्यक्तिगत होता है-महाप्रसाद बनाम नागेश्वरसहाय L. R. 6 P.C. 195,30. W. N. 1:52 I. C. 398; 28 0.C 352; A. I. P. 1925 P. C. 272750 M. L. J. 18. ( P. C. ).
भावी वारिस इस एलानके लिये नालिश कर सकते हैं कि उनके अधिकारमें, संयुक्त विधवाओंके समझौतेसे, जिसमें कि उन्होंने जायदाद को झूठ मूठ वक्फ किया हुआ बतायाहो, कोई असर नहीं पड़ता-मु० तहेलकुंवर बनाम अमरनाथ-A. I. R. 1925 Lah. 2.
वारिस द्वारा, विधवाके जीवनकालमें किया हुआ समझौता असली धारिसोंपर लाजिमी नहीं होता, क्योंकि उस समय वे केवल वरासत की उम्मीदमें थे-नागर बनाम खाले-L. R. 6 All. 267; 86 1. C. 8937 A. I. R. 1925 All. 440.
विधवा द्वारा या उसके खिलाफ नालिशके मुताल्लिक़ जायदाद की पाबन्दी भावी वारिसपर होती है-विधवाके खिलाफ क़ब्ज़ा मुखालिफाना भावी वारिसके खिलाफ होता है-वैथीलिंगा बनाम श्रीरङ्गाथानी-52 I. A. 322; L R.6 P.C. 167; 48 Mad. 883; 42 C. L. J. 563; A. I. R. 1925 P. C. 249; 49 M. L. J. 769 ( P. C.).
विधवाके इन्तकालपर भावी वारिसको एतराज करने का अधिकार हैबैजनाथ बनाम मंगलप्रसाद 425 P. H. C. C. 271; 90 I. C. 732; 6 Pat. L. J.731.
उदाहरण-(१) 'अज' ने अपने मरनेके समय एक विधवा और एक लड़की तथा लड़कीका लड़काछोड़ा। विधवा जायदादकी वारिस हुई । उसने कुछ जायदाद बिना कानूनी ज़रूरतके बेचदी लड़की दावा कर सकती है कि इन्तकाल नाजायज़है इस लिये रद कर दिया जाय ।
(२) 'अज' मरा उसने एक लड़की और अपने भाई शिवको छोड़ा। लड़की जायदादकी वारिस हुई। उसने जायदादका इन्तकाल किया, तो शिव आपत्ति कर सकता है। मगर जब किसीने एक लड़की बिन ब्याही,एक ब्याही गरीब एक ब्याही अमीर और एक भाई (या दूसरा नज़दीकी वारिस) छोड़ा हो, तो जायदाद पहिले बिन ब्याही लड़कीको मिलेगी। यदि उसने कोई जायदाद कानूनी ज़रूरतसे इन्तकाल करदी हो तो दूसरी ब्याही गरीब लड़की ऐसा