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रिवर्जनर
[ दसवां प्रकरण
स्पेसीफिरिलीफ एक्ट 1 of 1877 S.S. 42; श्यामासुन्दरी चौधरानी बनाम जमुना चौधरानी 24 W. R. C. R. 86;9 W. R. C. R. 460.
अगर विधवाका पति कोई जायदाद रेहन कर गया हो तो विधवाके जीवनकाल में रिवज़नर पारिसका हक उस जायदादपर इतना भी नहीं माना जायगा कि वह उसको रेहनेसे छुटाले, देखो-30 All. 497 ट्रान्सफर आफ प्रापरटी एक्ट IV. 1882 S. S 91.
वारिस होने की आशामात्रसे रिवर्ज़नर का जो कुछ भी हक जायदाद में समझा जासके उसको वह रिवर्जनर किसी दूसरेके हाथ इन्तकाल नहीं कर सकता, देखो-ट्रान्सफर आफ प्रापरटी एक्ट IV. 1882. S. S. 6 (a); 32 Mad. 2068 29 Mad. 120; 29 Mad. 390-399; 32 All. 88; जगनाथ बनाम दिग्बू 31 All. 53; 29 Cal. 355, 6C. W. N. 395; श्याम. सुन्दरलाल बनाम अचनकुंवर 25 I. A. 183; 21 All. 71; 2 C. W. N. 729; 17 All. 125; 25 Cal. 778; 10 C. L. R.61-65; 6 C. L. R. 528; 33 All. 414.
रिवर्जनर अपना हक छोड़ भी नहीं सकता, देखो-30 Bom. 2013 और किसी डिकरीसे उसका वह हक कुर्क भी नहीं हो सकता, देखो-ज़ान्ता दीवानी सन् 1908 S. S. 60 दिवाला हो जानेपर श्राफिशियल एसाइनी या दिवालिया अदालतके हाथमें वह हक नहीं जासकता, देखो-बाबू अन्नाजी बनाम रतोजी 21 Bom. 319; इन्सालवेन्सी बम्बई का एक्ट 3 of 1909 S. S. 523 प्राविन्शियल इन्सालवेन्सी एक्ट 3 of 1907 S. S. 2 (e).
रिवर्जनर अपने आशामात्र स्वार्थ को तकसीम नहीं करसकता जैसे श्यामाकुंवर विधवाके मरनेके बाद शिवदत्त वारिस होनेकी आशा रखता है। मगर शिवदत्तका जो स्वार्थ जायदादमें है, उसमें वह किसीको अपना शरीक महीं कर सकता-30 Mad. 486.
अगर कोई रिवर्जनर चाहे तो किसी वसीयतनामेके अनुसार विधवा को जायदादकी वारिस मान सकता है-31 Mad. 474; परन्तु उसके ऐसा करनेसे यह ज़रूरी नहीं है, कि उसके पीछे वाले रिवर्जनर भी इस बात के माननेके लिये पाबन्द हों, देखो--रामशङ्करलाल बनाम गनेशप्रसाद 29 All. 451; 30 All. 406.
जबकि कई रिवर्जनर हों और क्रमसे एकके बाद दूसरा वारिस होने वालाहो तो वारिस होनेका अधिकार वे आपसमें एक दूसरेसे नहीं पाते, बल्कि उनमें से हरएक आखिरी पूरे मालिकके वारिसकी हैसियतसे जायदाद पाता है, 28 Mad. 57; भगवन्ता बनाम सुखी 22 All. 33; 32 Cal. 62; शिवशंकरलाल बनाम सोनीराम ( 1909 ) 32 All. 33-41.