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रिवर्ज़नर और उनके अधिकार
दसवां प्रकरण
इस प्रकरणमें उन उत्तराधिकारियों के अधिकारका वर्णन किया गयाहै जो किसी विधवा या किसी समिावद्ध वारिसके पश्चात् उस जायदादके वारिस होने वालेहैं कि जो जायदाद इस समय विधवा या दूसरे सीमावद्ध वारिसके कब्जे में है 'सीमाबद्ध' शब्दसे यह मतलबहै कि जब जायदाद किसी को सिर्फ उसकी जिन्दगी भरके लिये मिली हो और उसका अधिकार जायदाद के इन्तकाल का न हो, वह केवल उसक मुनाफे के पानेका अधिकारी हो, तो वह वारिस समिावद्ध कहलाताहै जैसे विधवा को जायदाद उसके जीवन भर के लिये मिलीहो तो वह सीमावद्ध वारिस कहलायेगी। यह ध्यान रखना चाहिये कि बम्बई और मदरास प्रान्त में कुछ औरतें पूरे अधिकारके साथ जायदाद पाती हैं, यह सीमावद्ध नहीं हैं । इसके पढ़ने से पहिले यह अवश्य जान लेना चाहिये कि 'रिवर्जनर' किसे कहतेहैं, तथा वारिस कैसे निश्चित करना चाहिये ?--रिवर्जनर के लिये देखो दफा ५५८.२-वारिस कैसे निश्चित करना चाहिये देखो दफा ५६३. 'रिवर्जनर' होने वाले वारिसको कहते हैं। दफा ६६३ जायदादमें रिवर्ज़नरका स्वार्थ
विधवा या किसी सीमावद्ध स्त्री का कब्ज़ा जायदादपरसे तभी समाप्त होजाता है जबकि वह मरजाय या उसने संसार त्याग दिया हो। इसके पहले रिवर्ज़नर कौन होगा यह जानना कठिन है। विधवा या दूसरी स्त्री जब तक न मरे या संसार त्याग न करे तबतक उसके पति या उस मर्दके जिससे दूसरी स्त्रीको जायदाद मिली है, वारिस, जायदाद पानेका दावा नहीं कर सकता, देखो-7 I. A. 115-154; 5 Cal. 7767 6 C. L.R.332 at P.332, 333.
- जबतक विधवा या दूसरी स्त्री ज़िन्दा रहेगी तबतक रिवर्जनरका जायदादमें कोई स्वार्थ नहीं रहेगा सिर्फ वारिस होने की आशामात्र रहेगी। किसी सीमावद्ध स्त्रीके जीवनकालमें यह नहीं कहा जा सकता कि उसके मरने के बाद जायदाद किसको मिलेगी क्योंकि उस वक्त जायदादका मालिक वही होगा जो उस स्त्रीके मरनेके समय जीवितहो और जो पिछले मर्द मालिकका वारिस होता अगर वह स्त्री बीचमें न होती, देखो-39 Mad. 390-391.
कोई रिवर्ज़नर ऐसा दावा अदालतमें नहीं करसकता कि उसके वारिस होनेका हक पहिले मान लियाजाय, देखो-काथामानचैऐर बनाम डोरासिंग टिवर 2 I. A, 169; 15 B. L. R. 83; 23 W. R. C. R. 314. और देखो