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दफा ३]
हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधक)
और एक विशेष वचनके अनुसार तथा एक दशामें १ लड़के की विधवा, २ पातकी विधवा, ३ परंपोकी विधत्रा, ४ मृत पुरुषकी सौतेलीमां, ५ भाईकी विधवा और ६ भाईके लड़के की विधवाभी अपने पतिय की शाखा वाले मर्द गोत्रज सपिण्डों के न होने पर उत्तराधिकार पाती हैं । मदरास स्कूल में 9 बहन, २ सौतेली बहन, ३ लड़केकी लड़की, ४ लड़की की लड़की, ५ भाईकी लड़की बन्धु मानी गईहैं । और बहन के पीछे इनके उत्तराधिकार मिलने के प्रश्न पर विचार किया गया है । इस कहने से हमारा मतमतलब यह है कि जिस एक वाक्य के अर्थ करनेका मतभेद आचाय में था उसीसे उत्तराधिकार में मतभेद पड़ गया अब आप वह वाक्य देखो - मनु ९ - १८७ में कहते हैं कि:
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अनन्तरः सपिण्डाद्यास्तस्यतस्यधनं भवेत् ।
श्रत ऊर्द्ध सकुल्यः स्यादाचार्यः शिष्यएवच ॥
इस वाक्य में "सपिण्ड" शब्द के अर्थ में मतभेद हुआ है । कुल्लूक भट्ट ने यह अर्थ किया"यः सपिण्डः पुमान् स्त्री वा तस्यमृतधनं भवति ” उन्होने सपिण्ड शब्दका अर्थ किया कि पुरुषहो या स्त्री हो दोनों सपिण्डहैं दोनों को मृतकी जायदाद मिलेगी । यह अर्थ बम्बई मदरास स्कूल में मानकर स्त्रियों का हक जायदाद पाने का माना गया परन्तु बंगाल मिथिला बनारस स्कूल में इसका अर्थ दूसरा किया गया जिसमें पांच से अधिक स्त्रियां नहीं शामिल की गयीं वहभी दूसरे तरीके से |
इधर बहुत रोज से वह विचार पैदाहो गया था कि जब कोई हिन्दू लड़केकी लड़की या लड़की की लड़की या वहन अथवा बहनका लड़का छोड़ कर मरे तो दूर के वारिस जायदाद ले जाते हैं तथा यह नजदीकी सपिण्डों को कुछ नहीं मिलता । ऐसा मानों कि मृत पुरुष अपनी बहन छोड़कर मरा तो उसको जायदाद न मिलेगी और दूर से दूर के वारिस ले जावेंगे फिर उसे कभी कभी खाने पीनेकी तकलीफ बरदाश्त करना होगी। एक मां बापसे जन्मी और मां बाप के बसवर शरीरके अंश बहनम होते हुये वह वारिस करार न पात्रे उसे भूखों मरना पड़े और गैर आदमी सब धन ले जावें । इत्यादि बातों पर विचार किया गया और बम्बई मदरास का कायदाभी देखा गया इन बातों से यह सर्वमान्य सिद्धान्त मिताक्षरा स्कूल के अन्दर कानून के रूपों में पास कर दिया गया जिसमें इनको जायदाद दूरके वारिसों से पहले मिल जाय । मेरी राय में इस कानून का पास होना अत्यावश्यक था 1
विस्तार – इस कानूनको दफा १ ( २ ) में कहा गया है कि यह कानून वहाँ पर लागू होगा जहां मिताक्षरा लॉ का प्रभुत्वद्वै । यह ध्यान में रखेयेगा कि सिर्फ दायभाग, बंगाल में माना जाता है और भारत की सब जगहों में मिताक्षरा लॉ का प्रभुत्वहै । इस लिये यह कानून बंगालको छोड़कर बाकी सब भारत में माना जायगा । ब्रिटिश बिलोचिस्तान और संथाल परगने भी इस कानून में शामिल हैं । अर्थात् बनारस, मिथिला, महाराष्ट्र, गुजरात, द्रविड़, और आंध्र प्रदेशों में अब यह कानून माना जायेगा । देखो इस किताब का पेज २७
ता० २१ फरवरी सन् १९२९ ई० को श्रीमान् गवर्नर जनरल ने इस कानूनकी मंजूरी प्रदान की है, और इस कानून में यह नहीं बताया गया है कि यह कानून कब से अमल में आवेगा इस लिये यह कानून उसी तारीख से अमल में आवेगा जिस तारीख को गवर्नर जनरल महोदय ने इसकी मंजूरीदी | जनरल क्लाज ऐक्ट का सारांश है कि जब किसी कानून में उसके लागू किये जाने की तारीख न बताई गई हो तो वह उस तारीख से लागू माना जायगा जिस तारीख को गवर्नर जनरलने मंजूरी दीहो । वारिस और हक - अभी तक उत्तराधिकार दादा ( बाप का बाप ) के बाद अर्थात् दादा के न होने पर बाप के भाई को मिलता था मगर अब दादा तक बराबर उसी प्रकार चला जायगा यानी मृत
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