________________
७६४
उत्तराधिकार
[नवा प्रकरण
और अपनी आमदनी एकही जगह जमा करती रहीं, तथा संयुक्त परिवार के भांति बर्ताव करती रहीं। तय हुआ कि उन्होंने एक संयुक्त परिवार जीवित कालके अधिकारका स्थापित किया था। यहभी तय हुआ कि संयुक्त जायदाद का रेहननामा खान्दानके दूसरे सदस्योंपर उसी प्रकार लाज़िमी होगा जैसे कि कर्ज़ ली हुई रकम किसी संयुक्त हिन्दू परिवारकी आवश्यकतामें लगाई गई हो। पी. कोकिल अम्मल बनाम पी० सुन्दर अम्मल 21 L. W. 259. 86 I.C. 633. A. I. R. 1925 Mad. 802.
वेश्या-पतित हिन्दू स्त्रीके स्त्रीधन जायदाद के सम्बन्धमें साधारण हिन्दुलॉ के वरासतके आदेश लागू होते हैं और वरासतके सम्बन्धमें पुत्रियोंको बमुकाबिले पुत्रोंके तरजीह नहीं दीजाती। शेख तालिबअली बनाम शेष अब्दुल रजाक 129 C. W. N. 624; 89 I. C. 141; A. I. R. 1925 Cal. 748. दफा ६५० विधवा की अपवित्रता
यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि जब पतिके मरनेके बाद विधवाको जायदाद मिलनेका समय उपस्थित हो अर्थात् पतिके मरनेके समय यदि विधवा फाइशा है तो उसे वरासतमें उसके पति की जायदाद नहीं मिलेगी। लेकिन अगर एक बार उसे जायदाद मिल गयी हो पीछे विधवा बदचलन हो गयी हो तो उससे जायदाद छीनी नहीं जायगी देखो मुल्ला हिन्दूला सन् १९२६ ई० पेज १०५ केस देखो 5 Cal.776; 7 I. A. 115; 24 Mad. 441; 36 Bom. 138, 12 I. C.714. नीचे विस्तार से इसी विषयको देखिये।
(8) उत्तराधिकारसे बंचित वारिस
दफा ६५१ व्यभिचारिणी विधवा
(१) धर्मशास्त्र और फैसलोंका संक्षिप्त मत-स्मृति चन्द्रिका (११-२२६) और वीरमित्रोदय (३-२-३) में कहा गया है कि हिन्दू विधवाके लिये उत्तराधिकारके द्वारा पतिकी जायदाद पाने के बारे में ज़रूरी शर्त यह है कि विधवा सच्चरित्र हो यानी व्यभिचारिणी न हो । मिताक्षरा और मयूखभी यही बात कहते हैं किन्तु दूसरे वारिससे व्यभिचारकी शर्त लागू न होगी। विधवाकी पवित्रता या सच्चरित्रताका अर्थ वारिस होनेके मतलबके लिये केवल इतना लिया जायगा कि उसने कभी अपने शरीरसे व्यभिचार नहीं किया मनसे चाहे किया हो । देखो 17 Indian; Cases 83; 16 C. W. N. 964 कात्यायन कहते हैं कि