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उत्तराधिकार
[नवां प्रकरण
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मिताक्षरा और मयूख बेटीके उत्तराधिकारके विषयमें ऐसी शर्त नहीं लगातेदेखो 4 Bom. 104-110, 111; इसलिये बंबई और मदरासमें तो यह प्रश्न साफ होगया है देखो कोजी आडू बनाम लक्ष्मी (1882) Mad. 149.
बंगाल स्कूलमें विधवा और अन्य स्त्री वारिसभी उस व्यभिचारके कारण जो उन्होंने वारिस होनेसे पहले किया हो उत्तराधिकारसे बंचितहो जाती हैं, देखो-रामनाथ कुलापतरो बनाम दुर्गासुन्दरी देवी 4 Cal. 550554; 32 Cal. 871; 9 C. W. N. 1002; 22 Cal. 347; 13 B L. R. 1; 19 W. R. C. R. 367-393; परन्तु ब्यभिचारके कारण स्त्रीधनकी वरासत का हक नहीं मारा जाता देखो-गंगाजाटी बनाम घसीटा 1 All. 46%3 नगेन्द्र नन्दिनीदासी बनाम विनयकृष्णदेव 30 Cal. 521; 7 C. W. N. 121, 26 Mad. 509. शास्त्री जी०सी० सरकार इसपर विवाद करतेहैं, देखो उनका हिन्दूलॉ-3 ad. P. 333. दफा ६५२ विधवाका पुनर्विवाह
एक्ट न० 15 सन 1856 S. S. 2 के अनुसार हिन्दू विधवा दूसरा विवाह करसकती है । उपरोक्त एक्टकी दफा २ में कहागया है कि
(दफा २) अपने पतिकी जायदादमें विधवा भरण पोषणके तौरपर जो हक़ रखती हो या अपने पतिके उत्तराधिकारियोंकी वारिस होने का जो हक़ रखती हो ( 22 Bom. 321.) या किसी वसीयतनामेके अनुसार किसी जायदादपर सीमावद्ध अधिकार रखती हो और उस बसीयतमें उसको पुनर्विवाहकी श्राज्ञा न दीगयी हो तो विधवाका पुनर्विवाह होतेही ऊपर कहेहुये उसके सब हक़ों का अन्त इस प्रकार होजायगा कि मानो वह मरगयी और उसके पतिके वारिस या दूसरे लोग जो विधवाके मरनेपर जायदादके वारिस होते, जायदादके वारिसहो जायेंगे।
-पुनर्विवाहके पहले उस विधवाने हिन्दूधर्म चाहे छोड़ा हो या न छोड़ा हो दोनोंही सूरतोंमें एक्ट नं० १५ सन् १८५६ ई० की दफा २ लागू होगीः देखो-मतंगिनी गुप्त बनाम रामरतन राय (1891) 19 Cal. 289; 3 W. R. C. R. 206.
पुनर्विवाह होजानेके बाद विधवा अपने पहिले पतिके पुत्र और अन्य उत्तराधिकारियोंकी वारिस होसकती है-अकोला बनाम बौरियानी 2 B. L. R. 199; 11 W. R. C. R. 827 29 Bom. 91; 6 Bom. L. R. 779; 26 Bom. 388, 4 Bom. L. R. 737; 28 Mad. 425.
हिन्दुओंमें जिन जातियोंमें विधवा विवाहका रिवाज है उन जातियों की विधवायें भी पुनर्विवाह करके अपने पूर्वोक्त हक्न खो देती हैं या नहीं,