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दफा ६०७]
सपिण्डोंमें वरासत मिलनेका क्रम
जायदाद लड़केकी मिल गयी हो, उसके बाद वह अपना पुनर्विवाह करले तो भी माता से जायदाद नहीं हटाई जायगी, अर्थात् दोनों सूरतोंमें माता को जायदाद मिलेगी। देखो-कोजीयाडू बनाम लक्ष्मी 5. Mad. 149, वेदामल बनाम वेदानैयाया 31 Mad. 100, डालसिंह बनाम दिनी 32 All. 155; बल्देव बनाम मथुरा 33 All. 702, यह सब बदचलनीके सम्बन्धी मामले हैं। पुनर्विवाहके विषयकी नज़ीर देखो-वासप्पा बनाम रायाया 29 Bom. 91.
(५) सौतेली माता-सौतेली माता सौतेले लड़के की वारिस कभी नहीं हो सकती इसलिये कि वह सौतेले बेटेकी जायदाद कभी नहीं पाती। देखो-रामानन्द बनाम स्वर्गियानी 16 All. 221; रामासामी नाम बनारासाम्मा 8 Mad. 133; टहलदाई बनाम गयाप्रसाद 37 Cal. 214 सेथाई बनाम नाचियर 37 Mad. 286.
बम्बई प्रांतमें सौतेली माता सौतेले लड़केकी वारिस मानी गयी है। क्योंकि वहांपर सगोत्र सपिण्ड मानी गयी है। देखो-केशरबाई बनाम बालब 4 Bom. 188; रस्सूबाई बनाम जोलिका बाई 19 Bom. 707; और देखो इस किताबकी दफा ६०,६०१. • (६) गोद लेने वाली माता-माताके अर्थमें गोद लेने वाली माता भी शामिल है। इसी लिये मिताक्षरालॉ के अनुसार गोद लेने वाली मा गोद लेने वाले वापसे पहिले दत्तक पुत्रकी जायदाद पाती है, देखो-नन्दी बनाम हरी 33 Bom. 404.
(७)जायदादका इन्तकाल-जब किसी माताको लड़केकी वरासतमें जायदाद उसकी जिन्दगी भरके लिये मिली हो तो वह यानी माता, कानूनी जरूरतोंके सिवाय जो इस किताब की दफा ६०२-७०६ में बताई गयी है जायदादको कहीं रेहन या बय या किसी तरहका इन्तकाल नहीं कर सकती। माताको जायदादमें जो कुछ मुनाफा मिले वह उसकास्त्रीधन है अर्थात् जायदाद के मुनाफासे यदि कोई दूसरी जायदाद वह खरीद करले या नकद छोडकर मर जावे तो वह जायदाद, जो लड़केसे वरासतमें मिली थी लड़केके वारिस को मिलेगी, मगर मुनाफेसे जो जायदाद खरीदी गयी थी वह माताके वारिस को मिलेगी। माता का हक मुनाफे पर पूरा है। उसके जी में जैसा आये वह कर सकती है। मुनाफेसे पैदाकी हुयी जायदाद स्त्रीधन बन जाती है।
(८) मयूखलॉ-उन केसोंमें जहांपर मयूखलॉप्रधानतासे माना जाता है मा से पहिले बाप, लड़केकी जायदादका वारिस होता है, देखो-खुदाभाई बनाम बाहधर 6 Bom. 541.
मयूखमें यह कहा गया है कि दौहित्रके अभावमें पिता और पिताके अभावमें माता धम पाती है। इस बातकी पुष्टि कात्यायनने भी की है, देखो