________________
सपिण्डों में वरासत मिलनेका क्रम
दफा ६२५ ]
इस निशान से यह मतलब समझिये कि नं०१३दादा है दादाके बाद एक्ट नं० २ सन १६२६ ई० के अनुसार अब लड़केकी लड़की यानी नं० १ की लड़की को जायदाद मिलेगी। उसके बाद लड़की की लड़की यानी नं० ५ की लड़की को, उसके बाद बहन और उसके बाद बहन के लड़के को जायदाद मिलेगी। बहन के लड़के के बाद नं०१४ यानी बापके भाई (चाचा) को मिलेगी और फिर आगे उसी क्रमसे चलेगी । उपरोक्त चार वारिस [ ( १ ) लड़केकी लड़की, (२) लड़की की लड़की, (३) बहन तथा ( ४ ) बहनका लड़का ] नये क़ानूनके अनुसार बीचमें वारिस माने गये हैं मगर इनके होनेसे सपिण्ड में कोई फर्क नहीं पड़ता सिर्फ चाचासे आगे के वारिसोंके हक़ चार दर्जे दूर हो गये हैं। देखो एक्ट नं० २ सन १६२६ ई० इस प्रकरण के अन्तमे ।
दफा ६२५ पहिले सिद्धान्तपर इलाहाबाद हाईकोर्टका मशहूर
७४७
मुकद्दमा
:
बुधासिंह वगैरा वादी बनाम ललतूसिंह बरौरा प्रतिवादी 34 All. 663. में माना गया है कि 'हर एक मिन्न शाखाकी लाइन तीन पीढ़ियोंमें ठहर जाती 'है'। इस नतीजेके अनुसार पोते तक उत्तराधिकार मिन्न शाखाओं में होता है, जैसा कि इस किताबकी दफा ६२४ में नक़शा दिया गया है। उपरोक्त मुक़द्दमें का खुलासा यह है -
34 All. 663. जस्टिस बेनरजी और जस्टिस पिगटके इजालमें बाबू गौरीशङ्कर सब जज मुरादाबादके फैसलेके खिलाफ ६ जुलाई सन १९१२ ई० को अपील पेश हुआ अपीलका नम्बर था २४६ सन् १६१० ई० । मुक़द्दमा, हिन्दूलॉ मिताक्षरा स्कूलके अङ्गर्गत दरमियान 'पितामहके प्रपौत्र' और 'प्रपितामहके पौत्र' के था । यानी दादाका परपोता, और परदादाके पोतेके ।
इस मुकदमे में नीचे लिखी नजीरें बहसमें लायी गयीं - ( १ ) कल्याणराय बनाम रामचन्द्र ( 1901 ) 24 I. L. R. All. 128. ( २ ) रटचपुतीदत्त बनाम राजेन्द्रनारायनराय ( 1839 ) 2 Mad. I. A. 133. ( ३ ) काशीबाई गनेश बनाम सीताबाई रघुनाथ शिवराम (1911) 13Bom. L. R.552. ( ४ ) राचाव बनाम कलिङ्ग अप्पा ( 1892 ) I. L. R. 16 Bom. 716. ( ५ ) करमचन्द गरैन बनाम ऑगडङ्गगुरैन ( 1866 ) 6 W. R. 158. ( ६ ) चिन्ना स्यामी पिलाई बनाम कुंजू पिलाई ( 1911 ) I. L. R. 353 Mad. 152. ( ७ ) भैय्याराम सिंह बनाम भैय्या उधर सिंह ( 1870 ) 13 Mad. I. A. 373. ( ८ ) सूर्य्यभुक्त बनाम लक्ष्मीगरासामा ( 1881 ) I. L. R. 5 Mad. 291.