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[ नवां प्रकरण
यह मुक़द्दमा उत्तराधिकार के अनुसार एक बहुत बड़ी जायदाद मनकूला और रमनकूला (स्थावर और जङ्गम) के दिला पानेका दायर किया गया था । जायदाद साहेब सहाय की थी । देखो
नैनसुखमल
७४८
रामसिंह 1 बुधासिंह
नरपतिसिंह
ललतूसिंह + ( प्रतिवादी )
उत्तराधिकार
राजा गुरसहाय
कानजीमल
+ बुधासिंह - चतुरी सिंह ( वादी )
T साहेब सहाय (मृत पुरुष )
+ पक्षकार हैं ।
इस मुक़द्दमे में बादी साहेब सहायके परदादादाका पोता था और प्रतिवादी साहेब सहायके दादाका परपोता। प्रारम्भिक अदालतमें यानी मुरादाबाद (यू०पी० ) में दावा डिस्मिस होगया अर्थात् वादीके खिलाफ फैसला हुआ । इसीलिये वादीने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की थी ।
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बादी अपीलांट की तरफसे आनरेबल डाक्टर सुन्दरलाल और श्रानरेबल पं० मोतीलाल नेहरूने बहसकी कि
"प्रारम्भिक अदालत ने जो यह नतीजा निकाला है कि दादाका परपोता परदादा पोतेसे पहिले वारिस होता है, यह हिन्दूलॉके विरुद्ध है । याज्ञवल्क्य के अ० २–१३५, १३६ का अर्थ मंडलीकने अपने अनुवादके २२०, ३७७, ३७८ और ३८० से ३८४ पेज तक ठीक तौरपर बताया है । मिताक्षराकी जिनपक्तियों पर विचार करना है वह मांडलीक के चेपटर २ सेक्शन ४ ल्पेसिटा १, ७ और सेक्शन ५ ल्पेसिटा १, ४, ५ में है । याज्ञवल्क्यके ऊपर कहे हुएश्लोकमें जो (अपुत्रस्य) शब्द आया है उसका अर्थ है - जिसके कोई मर्द औलाद न हो ( तत्सुता ) का अर्थ यह है "उनके लड़के" न कि उनकी औलाद और ( सन्तान) का अर्थ उस औलादसे है जो वरासतकी हक़दार है और जो पहिले कही गयी है । 'परपोता' कहीं भी नहीं कहा गया "
वादीके वकीलोंकी बहस इन ग्रन्थोंके आधार पर थी - जी० सी० घोस हिन्दूलॉ 125, 127; वेस्ट और बुहलर हिन्दूलॉ 124. 114, 116; जे० एन० भट्टाचार्य्य हिन्दूलॉ 448; यस०सी० सरकार व्यवस्था चन्द्रिका Vol. 1. 178, 183, 204; आर० सर्वाधिकारी हिन्दूला आफ् इनहेरीटेन्स 423, 435; मदन पारिजात सीताराम शास्त्रीका अनुवादित 22; जी०सी० सरकार हिन्दूलॉ चौथा