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दफा ६३६ ]
बन्धुओंमें वरासत मिलनेका क्रम
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ऊपर नं०१ से नं०४२ तक आत्मबन्धु, और नं०४३ से नं०८५ तक पितृ बन्धु तथा नं०८६ से नं० १२३ तक मातृबन्धु यताये गये हैं । जहांपर पंडित राजकुमार सर्वाधिकारीके मतमें कुछ भेद पड़ता है उसका सङ्केत उसी जगह कर दिया गया है। उपरोक १२३ बन्धुओंका रिश्ता जल्द समझमें आनेके लिये चार नक्शे आगे दिये हैं-देखो दफा ६३६. .
ऊपर जो बन्धुओंके नम्बर दिये गये हैं उन्हें नक्शोंसे इस प्रकार मिलान कीजिये।
नम्बर १ से नं० २० तक नक्शा नं०१ में देखो नम्बर २१ से नं०४२ तक नक्शा नं०२ में देखो नम्बर ४३ से नं०५६ तक नकशानं०१ में देखो नम्बर ५७ से नं०८५ तक नशा नं. ३ में देखो नम्बर ८६ से नं० ६६ तक नकशा नं०२ में देखो
नम्बर १०० नं० १२३ तक नक्शा नं०४ में देखो दफा ६३९ बन्धुओंके नकशे मिताक्षरालॉ के अनुसार
ऊपर दफा.६३८ में जो १२३ बन्धुओंका वर्णन किया गया है उनके रिश्ते समझनेके लिये चार नक्शे नीचे दिये गये हैं। नशोंमें 'पु' अक्षरसे पुत्र लड़का समझना और 'ल' अक्षरसे लड़की-पुत्री समझना । ये नक्शे सीव्यस०रामकृष्ण हिन्दूलॉ जिल्द २ सन १९१३ई० पेज १६३-१६५ से उद्धृत किये गये हैं। इन नकशोंके देखनेका कायदा सरल है । नक्शोंमें जो नम्बर दिये गये हैं वे दफा ६३८ के बन्धुओंके नम्बरके अनुसार हैं। ननशोंके मिलान करनेमें शब्दोंसे सावधान रहिये। शब्दके अर्थपर विचार करके मिलान कीजिये। अर्थात् किसी जगहपर बाप कहा गया है और किसी जगहपर पिता, एवं पुत्र
और लड़का,इत्यादि ऐसे स्थानोंपर शब्दका भेद पड़ जाता है किन्तु अर्थका नहीं। इसलिये अर्थ समझकर विचार कीजिये ।आप यदि चाहें तो दफा ६३८ में कहे हुए बन्धुको पहले देखकर पीछे नक़शा देने अथवा पहले नक्शेसे नम्बर देखकर पीछे उसी नम्बरमें बन्धुको देलें । ज्यादा अच्छा यह होगा कि जिस बन्धु के बारेमें आपको देखना हो पहले दफा ६३८ में पता लगाइये । पीछे जब उसका नम्बर मालूम हो जाय तो उसी दफाके नीचे यह देखो कि यह नम्बर किस नम्बर के ननशेमें है। पीछे उस नम्बर का नक्शा देखिये तो जल्द मालूम हो जायगा । प्रिवी कौन्सिलने हालमें जो राय जाहिर की है उसके अनुसार बन्धुओंका क्रम व नकशा आगे दिया गया है।