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दफा ६०८-६०६]
सपिण्डोंमें वरासत मिलनेका क्रम
मिताक्षरा-'पित्राऽभावे भातरोधनभाज'
तथा-भातृष्वपि सोदराः प्रथमं गृन्हीयुः भिन्नोदराणां भात्रा विप्रकर्षात्'
- पिताके न होनेपर भाइयोंको धन मिलेगा,भाइयों में पहिले सहोदर भाई (जो एकही मा से पैदा हुये हों) और सहोदरके न होने पर भिन्नोदर भाई (सौतेला भाई ) को धन मिलेगा, देखो-2 V. R. C. R. 123.
(२) पहिले सहोदर (सगे) भाईका हक़ होगा और उसके न होनेपर सौतेले भाईका, देखो-अनन्तासंह बनाम हुर्गासिंह (1910) 37 I. A. 191.
मिताक्षरालॉ के अनुसार घरासतक सम्बन्ध में और बटे हुये भाईको बटे हुये भाईपर तरजीह दीगई है, देवी भाई बनाम दयाभाई मोतीलाल 89. 1. C. 164.
(३) भाइयोंमें सरवाइवरशिपका हक नहीं लागू पड़ता इसलिये जब दो या दो से ज्यादा भाई हों तो यह सब जायदादको अपने अपने हिस्से के अनुसार लेते हैं; यानी अगर वह चाहें तो बटवारा कराले और जब उनमें से एक भाई मरेगा तो उसका हिस्सा उसके वारिसको मिलेगा। जैसे जय, और विजय दो भाई हैं । इनको उत्तराधिकारमें भाईकी जायदाद मिली। अगर वह चाहें तो बटवारा कराल और जब बटवारा हो जायगा तो हर एक भाई का हिस्सा, उसकी औलाद या उसके वारिसको मिलेगा। अगर सरवाइवर, शिपका हक़ होता तो बटवारा नहीं हो सकता। सरवाइवरशिपका हक मिता.. क्षराके अनुसार सिर्फ चार वारिसोंमें लागू माना गया है (देखो दफा ५७०).
(४) भाईका हन जायदादमें पूरा होता है। वह जायदाद पूरे अधिक कारों सहित लेता है. ( देखो दफा ५६४).
(५)जहांपर मयूख' माना जाता है (देखो दफा २३, ५७३, ५७७१. ५३८.) उन केसोंमें सौतेला भाई पितामहके साथ हिस्सा लेता है।
मयूख और मिताक्षरा दोनोंहीके अनुसार उस जायदादके उत्तराधिकार में, जो किसी स्त्रीके पूर्ण अधिकारमें हो, सगा भाई सौतेली बहिनके मुका: बिलेमें वारिस होता है-घनश्यामदास नारायनदास बनाम सरस्वतीबाई 21, L. W. 415; ( 1925 ) M. W. N. 285; 87 I. C. 621, A. I. R. 1925 Mad. 861.
मयूखका सिद्धान्त--हिन्दूलों की मयूख प्रणालीके अनुसार मुतवफ़ी भाईकी जायदाद, पहिले मरे हुये भाई के पुत्रोंको दूसरे जीवित भाई यो भाइयों